बोध गया, जहां से शुरू हुआ अहिंसा का मार्ग
बोध गया, जहां से शुरू हुआ अहिंसा का मार्ग
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सिद्दार्थ गौतम ने राज पाठ त्याग कर अध्यात्म का रास्ता अपनाया. वह युद्ध, अहिंसा से उकता गए थे. कईयो से शिक्षा लेने के बाद भी जब उन्हें ज्ञान का अनुभव न हुआ तो वह बिहार के बोध गया पहुचे. जहां आज महाबोधी मंदिर स्थित है. यह मन्दिर एक पवित्र बौद्ध धार्मिक स्थल है क्योंकि यह वही स्थान है जहाँ पर गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था.

देखा जाए तो सम्राट अशोक महाबोधी मंदिर के संस्थापक है. यह मन्दिर पहले बौद्ध मन्दिरों में से एक है जो पूरी तरह से ईंटों से बना है और वास्तविक रूप में अभी भी खड़ा है. घर छोड़ने के बाद  बुद्ध ने अलार और उद्रक नामक दो ब्राह्मणों से ज्ञान प्रप्ति का प्रयत्न किये किन्तु संतुष्टि नहीं हुई. उस के पश्चात निरंजना नदी के किनारे उरवले नामक वन में पहुँचे, जहाँ  वह पाँच ब्राह्मण तपस्वियों से मिले. इन तपस्वियों के साथ कठोर तप किये किन्तु कोई लाभ न मिल सका. अन्त मे वह गया पहुँचे, वहाँ वह वट वृक्ष के नीचे समाधी लगाये और प्रतिज्ञा की कि जबतक ज्ञान प्राप्त नही होगा, यहाँ से नही हटुँगा. सात दिन के बाद आंठवे दिन बैशाख पूणिर्मा के दिन उन्हे सच्चे ज्ञान की अनुभूति हुई. इस घटना को सम्बोधि कहा जाता है. जिस वट वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था उसे बोधि वृक्ष और इसलिए गया को बोध गया कहा जाता है.

सांसारिक समस्याओं से दुखी होकर सिद्धार्थ गौतम ने 29 वर्ष की आयु में घर छोड़ दिया. जिसे बौद्ध धर्म में महाभिनिष्कमण कहा जाता है. बुद्ध ने निर्वाण प्राप्ति के लिए 10 चीजों पर जोर दिया है, जिसमे अहिंसा, सत्य, शराब का सेवन न करना, असमय भोजन न करना, नृत्य गान से दूर रहने की बात विशेष है.

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