भारत : सत्तर बनाम चार साल, वक़्त और उसकी बदलती करवट
भारत : सत्तर बनाम चार साल, वक़्त और उसकी बदलती करवट
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हाल ही में नीति आयोग ने मोदी सरकार को हिदायत दी है कि अपने भाषण में अपनी नाकामयाबी के लिए पिछले 70 साल और उस दौरान राज करने वाली सरकार को कोसना बंद करे और पिछले चार साल की अपनी नाकामयाबी का ठीकरा हमेशा इतिहास के माथे पर फोड़ना बंद कर आगे बढ़े और अपने काम पर ध्यान दे. चुनावी वादों को निभाए और समस्याओं को सुलझाए. नीति आयोग का ये बयान हलके में नहीं लिया जा सकता क्योकि गर्त में जा चुके देश को खड़ा करना, उसे चलना सिखाना, फिर दुनिया की दौड़ में शामिल करवाना ज्यादा बड़ा काम था बजाय एक दौड़ते देश का हाथ थामकर वाह वाही  लूट लेने के. प्रायोगिक तौर पर भी यदि देखा जाये तो सत्तर साल बनाम चार साल भी कहा तक न्याय संगत है. दोनों पक्षों के लिए. सत्तर साल वालो ने कुछ नहीं किया यह एक चुनावी जुमला और सियासी डायलॉग हो सकता है. मगर गौर से देखने पर सत्य इसके विपरीत है. वहीं सिर्फ चार साल में दुनिया भर के सवाल एक साथ किये जाना भी बेमानी है. वक़्त बदलने में भी वक़्त लगता है.

बहरहाल एक (कांग्रेस) जहां हर मोर्चे पर खुद को पिछड़ता पा रही है जिसका कारण दुसरो से ज्यादा उसके अपने ही है. अब मरहम पट्टी के लिए महागठबंधन की राह अपना रही है और फिर से पुराने दिनों में लौटना चाहती है जो फ़िलहाल मुश्किल है. क्योकि दशकों से खोदे गए गड्ढे इतनी जल्दी तो नहीं भरने वाले. ऊपर से भितरघात,अकुशल नेतृत्व जो हर मौके पर दिक्कत दे रहा है, एकता की कमी, विजन से दुरी और मुद्दों को याद न रखे जाने की भूल के साथ वाकपटुता की कमी और अब तक के सबसे मजबूत दुश्मन से मुकाबला छोटी दिक्कत नहीं है. वहीं दूसरी ( NDA ) बेमिसाल मार्केटिंग स्ट्रैटजी, अद्भुत वाकपटुता, हवा का रुख और जनता के टेस्ट चेंज के दम पर फ़िलहाल कामयाबियों की सीढ़िया चढ़ रही है. जानती है कि कब किस मुद्दे को उठाना है और कब क्या काम करना है जो जनता के जहन में जिन्दा रहेगा साथ ही काम और विकास की कीमत भी जानती है कि यही फार्मूला है जो सदा जिन्दा रहना है. क्योकि पब्लिक अब सब जानती है. रणनीतिकारों की फौज अपनी काबिलियत से काम कर रही है और सबसे बड़ी बात हर काम को करने से लेकर उसके हो जाने तक प्रचार में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जा रही है.

मगर समय सबकी असलियत जानता है और दिखाता भी है. एक(कांग्रेस) आइना देख चुकी है और दूसरी( NDA ) को ये सबक है कि जनता जाग गई है और बर्दास्त करने की आदत भी लगभग छोड़ चुकी है. मुद्दा चार साल बनाम सत्तर का है तो इसका जवाब भी वक़्त ही देगा. जो वादे सत्तर सालो से नहीं निभाए गए वो चार सालो में कैसे निभेंगे. उनके पूरा होने का दावा करना भी जुठ है और उनके पूरा न किये जाने का इल्जाम लगाना जल्दबाजी. वक़्त ने करवट बदली है और करवट होती ही बदलने के लिए है जो फिर बदली जा सकती है अगर  ............       

 

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