जन्मदिन विशेष : वीरता की अद्भुत मिसाल थीं रानी लक्ष्मीबाई
जन्मदिन विशेष : वीरता की अद्भुत मिसाल थीं रानी लक्ष्मीबाई
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बुंदेले हर बोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाल रानी थी। चमक उठी सन 57 में वह तलवार पुरानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी। यह कविता हमने कई बार पढ़ी और सुनी है। दरअसल इस कविता के माध्यम से कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की वीरता और संघर्ष का बड़ा ही सुंदर वर्णन किया है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1835 में हुआ था। वे बचपन से ही वीर थीं। मोरोपंत तांबे और भागीरथी बाई की संतान के तौर पर वाराणसी में उनका जन्म हुआ।

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई बचपन से ही साहसी और वीर थीं। देश को पराधीनता की बेडि़यों से मुक्त करने के लिए वर्ष 1857 में एक बड़ा प्रयास किया गया। यह प्रयास इतिहास में भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम या सिपाही स्वतंत्रता संग्राम कहलाता है। अंग्रेजों के विरूद्ध किए जाने वाले संषर्घ में अपने प्राणों की आहूति देने वाले यौद्धाओं में वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई का नाम सर्वोपरि माना गया है। 1857 में भारत के स्वतंत्रता संग्राम का सूत्रपात हुआ, जिसमें झांसी की रानी ने बढ़चढ़कर भागीदारी की।

रानी लक्ष्मीबाई का जन्म उत्तरप्रदेश के वाराणसी में हुआ था मगर वे पली बढ़ीं बिठुर के पेशवा के यहां थीं। उनके जीवन पर पेशवा बाजीराव द्वितीय के जीवन का गहरा प्रभाव पड़ा था। अपनी मां की मृत्यु हो जाने पर वह पिता के साथ ही बिठूर आईं। यहां पर उन्होंने मल्लविद्या, घुड़सवारी और शस्त्रविद्या का प्रशिक्षण लिया। उन्होंने बिठुर के पेशवा के यहां तात्या टोपे से भी राजनीतिक प्रशिक्षण प्राप्त किया था। तात्या रानी लक्ष्मीबाई के राजनीति गुरू थे। पुराणों की कथाऐं, वीर गाथाऐं उन्होंने सुन रखी थी। मनु का विवाह वर्ष 1842 में झांसी के राजा गंगाधर राव निवालकर के साथ हुआ। जिसके बाद इन्हें लक्ष्मीबाई कहा जाने लगा।

रानी लक्ष्मीबाई द्वारा किले में व्यायामशाला बनवाई यहां वे शस्त्रविद्या का अभ्यास किया करती थीं। उन्होंने घुड़सवारी का प्रबंध भी किया। उनकी योग्यता से राजा गंगाधरराव भी बेहद प्रभावित हुए। रानी लक्ष्मीबाई ने स्त्रियों की एक सेना तैयार की। वर्ष 1851 में रानी लक्ष्मीबाई का एक पुत्र हुआ। मगर बाद में वह बीमार हो गया और उसकी मौत हो गई। इससे झांसी शोक के सागर में डूब गई। रानी लक्ष्मीबाई ने दत्तक पुत्र को लेकर उसका नाम दामोदर राव रखा। मगर इसके बाद ही राजा गंगाधर राव की भी मृत्यु हो गई। राजा गंगाधर राव के मृत्यु के बाद रानी लक्ष्मीबाई ने राज्य का संचालन संभाला। रानी बहुत ही दयालु थीं।

उन्होंने एक बार गरीबों को परेशान देखा इसके बाद उन्होंने राज्य में एक निश्चित दिन दान आदि करने की घोषणा करवाई। अंग्रेज झांसी को अपने अधीन करने के प्रयास में थे। उन्होंने महारानी के दत्तक पुत्र को उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया। रानी को पत्र लिखकर कहा कि झांसी पर अंग्रेजों का अधिकार होगा। ऐसे में रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी न देने की बात कही और वे अंग्रेजों द्वारा झांसी हथियाने का षडयंत्र समझ गईं।

उन्होंने अंग्रेजोें से संघर्ष किया। इस संघर्ष में उन्होंने 18 जून 1857 को उन्होंने झांसी के लिए संघर्ष करते हुए अपनी जान दे दी। बाबा गंगा दास की कुटिया के पास घायल अवस्था में रानी लक्ष्मी बाई ने अंतिम सांस ली। वे इतनी साहसी थीं कि उन्होंने संघर्ष करते हुए अपने घोड़े पर सवारी करते हुए किले से छलांग लगा दी थी।

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