पीटी उषा - उड़नपरी बन,भारत को दी नई पहचान
पीटी उषा - उड़नपरी बन,भारत को दी नई पहचान
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एक ऐसा दौर जब भारत को वैश्विक स्तर पर अंधविश्वासों से भरा, सपेरों का देश कहा जाता था, जहां के निवासी उनींदे होकर कुछ दशक पहले ही आज़ादी के बाद देश को फिर से गढ़ने की तैयारी में थे। जिसे विश्व स्तर पर कहीं कोई दर्जा हासिल नहीं था। उस देश के खिलाडि़यों ने 1980 से 1984 तक अंतरराष्ट्रीय खेल स्पर्धाओं में कुछ दमखम भरना शुरू किया। ऐसे देश को खेलों में नई पहचान देने वालों में पी.टी. उषा का नाम हमेशा याद रखा जाता है। पी.टी. उषा का नाम याद आते ही आपकी आंखें खुशी से चमक उठती हैं। आपको रेसिंग ट्रेक पर दौड़ती हुई एक भारतीय महिला याद आ जाती है और आप कह उठते हैं पी.टी. उषा जैसा दूसरा कोई नहीं।

जी हां, इस भारतीय महिला एथलीट जैसी सफलता इसके बाद किसी भारतीय को नहीं मिली। पी.टी. शायद आपको नाम जानकर यह लग रहा होगा कि ये पीटी करवाते - करवाते स्पोट्र्स स्पर्धाओं में पहुंच गईं, जी नहीं, इनका पूरा नाम पिलावुळळकण्टि तेक्केपरम्पिल् उषा है। दरअसल इन्होंने दक्षिण भारत की उस परंपरा को जिंदा रखा जिसमें अपने नाम के आगे परिवार और गांव का नाम भी लगाया जाता है। इन्हें उड़न परी और भारतीय ट्रैक एंड फील्ड की रानी कहा जाता है। पीटी उषा ने किसी बड़े स्तर से अपने खिलाड़ी जीवन की शुरूआत नहीं कही बल्कि उन्होंने एक खेल स्कूल से ही अपना जीवन आरंभ किया। दरअसल 1976 में केरल में महिलाओं के लिए खेल विद्यालय शुरू हुआ। जिसमें उन्हें अपने जिले का प्रतिनिधित्व दिया गया।

यहां से उन्होंने कड़ी मेहनत कर राष्ट्रीय विद्यालयीन खेलों में भागीदारी की। जब उनका प्रदर्शन शानदार रहा तो वरिष्ठ कोच और खिलाड़ी ओएम नम्बियार ने उन्हें चयनित किया और वे उनके प्रशिक्षक बने। यहां से उन्होंने अंतर्रराष्ट्रीय स्पर्धाओं के लिए टेक आॅफ करना शुरू किया। भारत को सबसे पहली सफलता उन्होंने 1982 के एशियाड में दिलवाई। इस स्पर्धा में उन्होंने 100 मीटर और 200 मीटर प्रतियोगिता में रजत पदक अर्जित किया। इसे भारत की बड़ी सफलता माना गया। इसके बाद तो उन्होंने एशियाई ट्रैक और फील्ड में कीर्तिमान रच दिया।

यहां उन्होंने 400 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने वर्ष 1996 अटलांटा ओलिंपिक में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया। पीटी उषा ने सोल में स्वर्ण पदक अर्जित किया, इस स्पर्धा में उनके सााि कुश्ती के फ्रीस्टाईल वर्ग में करतार सिंह ने स्वर्ण पदक प्राप्त किया। इस प्रतियोगिता में केवल दो ही खिलाडि़यों ने भारत के लिए स्वर्ण पदक प्राप्त किया था। पीटी उषा भारत के खिलाडि़यों के लिए एक आदर्श बन गईं। दरअसल जब पीटी उषा ने एथलेटिक्स में भागीदारी की थी तब वह दौर भारत के खेल जगत के लिहाज से काफी निराशाजनक था। खेलों में पेशेवर तरीके से भागीदारी को तवज्जो नहीं दी जाती थी।

देश में खेल सुविधाओं का अभाव था। अंतर्रराष्ट्रीय स्तर की जिम, फिटनेस सेंटर और ऐरिना तो तब बहुत दूर की बात हुआ करती थी। ऐसे में अंतर्रराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में भारतीयों की सफलता दिन में देखे जाने वाले स्वप्न की तरह माना जाता था। आज भी पीटी उषा का नाम खेल जगत में सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्हें कई राष्ट्रीय - अंतर्रराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए। इसके साथ रेलवे ने उन्हें अपने खेल परिवार का हिस्सा बनाया।

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