style="text-align: justify;">जहाँ शादी की बात आती है, वहां शहनाई की आवाज़ खुदबखुद कानों में गूंजने लगती है, जिसका श्रेय जाता है उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को जिन्होंने शहनाई को विश्व भर में पहचान दिलाई। बिस्मिल्लाह खान का जन्म 21 मार्च 1916 को एक बिहारी शिया मुस्लिम परिवार में हुआ था। बचपन में वें मरूद्दीन के नाम से जानें गए, परन्तु उनके दादा ने उन्हें "बिस्मिल्लाह" (मतलब "श्रीगणेश" या "अच्छी शुरुआत") नाम दिया।
उनके खानदान के लोग भारतीय शास्त्रीय संगीत में परिपूर्ण थे, महज 6 वर्ष की उम्र में ही बिस्मिल्लाह खान अपने पिता के साथ बनारस आ गए और अपने चाचा अली बख्श "विलायती" से शहनाई बजाना सीखा। धार्मिक रूप से एक सच्चे मुसलमान होते हुए वह ज्ञान की देवी सरस्वती के आराधक थे, वे अक्सर काशी के बाबा विश्वनाथ मन्दिर में बैठकर अथवा गंगा के किनारे पर शहनाई बजाया करते थे।
उन्होंने शहनाई को पूरे विश्व में पहचान दिलाई। इसके लिए उन्हें वर्ष 2001 में भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त उन्हें पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री पुरस्कार भी दिया गया। वर्ष 2006 में उन्हें तबियत खराब होने पर वाराणासी के अस्पताल ले जाया गया जहां उन्होंने 21 अगस्त 2006 को अपनी अंतिम सांस ली।
उनके शहनाई के प्रति प्रेम को देखते हुए उनके शव के साथ शहनाई भी दफनाई गई और भारतीय सेना द्वारा 21 तोपों की सलामी दी गई।