'वंदे मातरम्' लिखने वाले बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय को अंग्रेज़ी से थी चिढ़, संस्कृत से था प्यार
'वंदे मातरम्' लिखने वाले बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय को अंग्रेज़ी से थी चिढ़, संस्कृत से था प्यार
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भारत के राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम्' के रचियता बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का नाम देश का बच्चा-बच्चा जानता है. भारत के अलावा विदेशों में वे भी अपनी रचनाओं के लिए मशहूर हैं. उनका जन्म 27 जून 1838 को बंगाली ब्राह्मण परिवार में बंगाल स्थित कंथालपरा में हुआ था. बंकिम जी शिक्षित परिवार से आते थे. इनके पिता सरकारी नौकरी में थे, जो बाद में बंगाल के मिदनापुर के उप कलेक्टर बन गए. बंकिम चंद्र को बचपन से ही पढ़ने-लिखने में बहुत दिलचस्पी थी. हालांकि, उन्हें अंग्रेजी से अधिक संस्कृत पसंद थी, इसका एक विशेष कारण यह भी था कि एक बार स्कूल में उनके इंग्लिश के टीचर ने उन्हें अंग्रेजी न आने पर पिटाई कर दी थी, जिसके बाद से बंकिम चन्द्र को अंग्रेजी से ही चिढ़ हो गई. 

बंकिमचंद्र जी ने अपनी स्कूली शिक्षा मिदनापुर के सरकारी स्कूल में ही पूरी की. बंकिम बचपन से ही मेधावी थे. इन्होंने पहली बार स्कूल के दिनों में ही कविता लिखी थी. वे पढ़ाई के साथ ही खेलकूद में भी आगे थे. स्कूल में उनकी पहचान एक मेधावी और मेहनती छात्र के रूप में थी. बंकिमचंद्र जी ने कॉलेज की शिक्षा हुगली मोहसिन कॉलेज से प्राप्त की थी, फिर उसके बाद उन्होंने आर्ट्स विषय में 1858 में ग्रेजुएशन किया. इन्होनें कानून की परीक्षा पास कर, इसकी डिग्री भी प्राप्त की. बंकिम की रचना ‘आनंदमठ’ सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुई, इसमें ही बंकिमचंद्र जी ने 'वंदेमातरम्' गीत को पहली बार लिखा था. जो आगे 1937 में देश का राष्ट्रीय गीत बना.

बकिम जी को बचपन से ही लेखन का शौक था. वे ईश्वरचंद्र गुप्ता जी को अपना आदर्श मानते थे, उन्ही के मार्ग पर चलते हुए उन्होंने भी कविता लेखन के द्वारा अपनी साहित्यिक यात्रा आरंभ की.1865 में बंकिम चन्द्र जी ने बंगाली भाषा में अपना प्रथम उपन्यास लिखा और प्रकाशन किया, जिसका नाम 'दुर्गेशनंदिनी' था.  बंकिम जी का विवाह महज 11 वर्ष में हो गया था, उस वक़्त उनकी पत्नी महज 5 साल की थी. शादी के 11 साल बाद इनकी पत्नी का निधन हो गया. जब बंकिम जी 22 वर्ष के थे. इसके बाद बंकिम चन्द्र जी ने दूसरा विवाह राजलक्ष्मी देवी से किया, जिनसे उन्हें तीन बेटियां हुई. बंकिम जी की मात्र 55 वर्ष में अपने कामकाज से सेवानिवृत्त होने के तुरंत बाद ही 8 अप्रैल को 1894 को बंगाल के कलकत्ता में निधन हो गया.

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