मखमली आवाज़ धनी थे मन्ना डे, हिंदी के अलावा इन भाषाओं में भी गए चुके थे गीत
मखमली आवाज़ धनी थे मन्ना डे, हिंदी के अलावा इन भाषाओं में भी गए चुके थे गीत
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मन्ना डे भारतीय संगीत जगत की मशहूर आवाज़ों में काफी ऊंचा स्थान प्राप्त है। पचास और साठ के दशक में अगर हिंदी फ़िल्मों में राग पर आधारित कोई गीत होता, तो उसके लिए संगीतकारों की पहली पसंद मन्ना डे ही हुआ करते थे। मन्ना डे का जन्म 01 मई 1919 को उत्तरी कोलकाता के एक बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम पूर्ण चंद्र डे और माता का नाम महामाया डे था। मन्ना डे का वास्तविक नाम प्रबोध चंद्र डे है।

मन्ना डे को 1950 में आई फ़िल्म ‘मशाल’ में प्रथम बार एकल गीत गाने का अवसर मिला। गीत के बोल थे ‘ऊपर गगन विशाल’ और इसे संगीत दिया था सचिन देव वर्मन ने। वर्ष 1952 में मन्ना डे ने ‘अमर भूपाली’ नाम से मराठी और बांग्ला में आई फ़िल्म में गीत गाया और स्वयं को एक बंगाली गायक के तौर पर स्थापित किया। उन्होंने हिन्दी के साथ ही बंगाली, मराठी, गुजराती, मलयालम, कन्नड और असमिया भाषा में भी गाने गाए। 

'कसमें वादे प्यार वफ़ा, 'पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई', 'लागा चुनरी में दाग़', एक चतुर नार करके श्रृंगार जैसे गीत आज भी मन्ना डे की मखमली आवाज़ का जादू बिखेरते हैं। मन्ना डे ने लोकगीत से लेकर पॉप तक हर तरह के गाने गाए और देश परदेस में संगीत के प्रशंसकों को अपना मुरीद बना लिया. उन्होंने हरिवंश राय बच्चन की मशहूर कविता ‘मधुशाला’ को भी अपनी आवाज़ दी.

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