दस्यु सुंदरी फूलन देवी का खूनी बदला, एक कतार में खड़े 22 ठाकुर और बरसती गोलियां
दस्यु सुंदरी फूलन देवी का खूनी बदला, एक कतार में खड़े 22 ठाकुर और बरसती गोलियां
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'दस्यु सुंदरी' के नाम से मशहूर फूलन देवी के बारे में कई कहानियां हैं। लेकिन यह वो घटना है, जिसने चंबल की घाटी में फूलन देवी को आतंक का पर्याय बना दिया। जब-जब फूलन का नाम आएगा, बेहमई नरसंहार का नाम भी याद आता रहेगा। इसी गांव में फूलन देवी ने 14 फरवरी, 1981 को 22 ठाकुरों को एक कतार में खड़ा करके गोलियों से छलनी कर दिया था। इसी हत्याकांड का बदला लेने के लिए 25 जुलाई 2001 को शेर सिंह राणा ने फूलन देवी को मौत के घाट उतार दिया था। 

उसके बाद से यानी लगभग 18 वर्ष से इस गांव में शेर सिंह को किसी 'हीरो' की तरह पूजा जाता है। आइए आपको बताते हैं चंबल घाटी के एक कलंकित इतिहास बेहमई नरसंहार की खूनी गाथा। 14 फरवरी 1981 को डकैत फूलन देवी का प्रकोप बेहमई गांव पर टूटा था। नदी किनारे बसे इस अंतिम गांव में लगभग दोपहर 2:30 बजे फूलन देवी ने अपने साथियों के साथ पवेश किया। इस नरसंहार में मारे गए सुरेन्द्र सिंह की विधवा विद्यावती उस भयावह मंजर को याद करते हुए कहती हैं कि फूलन के साथी प्रत्येक घर में घुस कर लोगों को पकड़ रहे थे।

विद्यावती कहती हैं हमारा पूरा परिवार घर में ही उपस्थित था। जैसे ही फूलन के साथी घर की ओर बढे़, हमें पता चल गया कि कुछ गलत होगा। मेरे ससुर मेरे छोटे से बेटे को गोद में लेकर भागने लगे। हम अलग भागे और पति अलग, फिर भी हमें डकैतों ने पकड़ लिया। डकैत कई घरों से लोगों को पकड़ कर पीपल के समीप ले गए। तब गांव में केवल डकैत थे और जिन 22 लोगों को पकड़ा गया था वो ही लोग बचे थे, बाकी सब भाग गए थे। उन्हें एक कतार में खड़ा कर फूलन देवी ने गोलियों से भून डाला था। फूलन देवी द्वारा लिखी गई पुस्तक के अनुसार, उस गाँव के लोगों ने फूलन का सामूहिक बलात्कार किया था, जिसका बदला लेने के लिए फूलन ने ये नरसंहार किया।

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