भूख -जावेद अख़्तर
भूख -जावेद अख़्तर
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भूख...

आँख खुल मेरी गई हो गया मैं फिर ज़िन्दा
पेट के अन्धेरो से ज़हन के धुन्धलको तक 
एक साँप के जैसा रेंगता खयाल आया 
आज तीसरा दिन है 
आज तीसरा दिन है 

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