अगर ट्रेन भोपाल स्टेशन पहुंच जाती तो मच जाता कोहराम
अगर ट्रेन भोपाल स्टेशन पहुंच जाती तो मच जाता कोहराम
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भोपाल। तारीखें बदल जाती हैं और तारीखों के बदलने के साथ समय, स्टेशन, स्थानों और सड़कों पर आने - जाने वाले लोग भी बदल जाते हैं। समय के फेर में कई बातें खो जाया करती हैं लेकिन, कुछ घटनाऐं ऐसी होती हैं जो इतिहास के पन्नों पर सकारात्मक तौर, पर याद की जाती हैं तो कुछ घटनाऐं काले दिन के रूप में स्मरण हो आया करती हैं। आप जानते हैं कि, आज ऐसा कौन सा दिन है, नहीं तो फिर जान लीजिए, आज का दिन जाना जाता है, भोपाल के उस कारखाने के लिए, जिसमें स्थापित किया गया संयंत्र मौजूदा समय में जंग खाते हुए टूल्स और मशीनरी के तौर पर नज़र आता है।

इस कारखाने का नाम है यूनियन कार्बाइड, अब आपके स्मृति पटल पर कुछ दृश्य नज़र आने लगे होंगे। जी हां, हम बात कर रहे हैं यूनियन कार्बाइड में हुए गैस रिसाव की। यह गैस रिसाव इतना खतरनाक था कि, इसने पीढ़ियों पर भी जानलेवा असर डाल दिया। आज भी इसके, निशान भोपाल में जल, थल में नज़र आते हैं। यह फैक्ट्री जिस क्षेत्र में थी उसके आसपास के स्थल को लेकर कहा जाता है कि, इस बड़े क्षेत्र को ही आईसीयू में शिफ्ट किए जाने की जरूरत है।

यहां के पानी में कई घातक रसायन आज भी घुले हुए हैं। जो कि, कैंसर के ही साथ किडनी और अन्य महत्वपूर्ण अंगों को प्रभावित करते हैं। मगर इस घटना के दौरान रेलवे के कुछ सतर्क कर्मचारियों ने ऐसा कुछ किया जिसे आज तक सलाम किया जाता है। अपने स्वास्थ्य की परवाह न करते हुए उन्होंने भारतीय रेल के उस जज़्बे को कायम रखा जिसके लिए, उसे दुनिया में जाना जाता है। दरअसल कर्मचारियों ने इटारसी की तरफ से आने वाली ट्रेनों को भोपाल पहुंचने से पूर्व रोकने का प्रयास किया।

इस कार्य में स्टेशन प्रबंधक, स्टेशन मास्टर समेत रेलवे के सभी कर्मचारियों ने अपना योगदान दिया। बीना की ओर से आने वाली रेलों को विदिशा, निशातपुरा, सलामतपुर, इटारसी की ओर जाने वाली रेल सेवाों को मिसरोद, मंडीदीप, औबेदुल्लागंज और बुदनी के समीप रोक दिया। ऐसे में लगभग दो दर्जन रेलों को भोपाल आने से पूर्व रोक दिया गया।

रेलवे के कर्मचारी विशेषतौर पर भोपाल स्टेशन पर पदस्थ स्टेशन प्रबंधक हरीश धुर्वे व हरिशंकर शर्मा आदि अपने मुंह पर कपड़ा बांधकर और हांफते हुए, अपनी ड्यूटी करते रहे इन लोगों को उन लागों जिंदगियों को बचाया जो, भारतीय रेल की इन रेल सेवाओं में सफर कर रहे थे। यदि यात्री रेलें भोपाल पहुंच जाती तो कई यात्री गैस की चपेट में आकर अपनी जान गंवा देते मगर रेलकर्मियों की सूझबूझ और समर्पण ने मौत की ओर बढ़ रहे इन लोगों को संजीवनी के समान राहत पहुंचाई।

हालांकि जहरीली गैस के प्रभाव के कारण, स्टेशन प्रबंधक धुर्वे को बचाया नहीं जा सका लेकिन, अपने जीवन की आहूति देकर उन्होंने, लाखों प्राणों की रक्षा की। रेलवे के लगभग 44 कर्मचारियों को इस जहरीली गैस के कारण पीड़ा हुई। कुछ त्रासदी के एक सप्ताह और, अन्य कुछ वर्षों में पीड़ित होकर शहीद हो गए। इन सभी की स्मृति में भोपाल स्टेशन परिसर में स्मारक का निर्माण किया गया है। इस स्मारक के पास शहीद 45 कर्मचारियों के नाम का उल्लेख किया गया है।

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