आज है भीष्म पितामह जयंती, जानिए कैसे हुई थी उनकी पराजय
आज है भीष्म पितामह जयंती, जानिए कैसे हुई थी उनकी पराजय
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आप सभी को बता दें कि आज भीष्म पितामह जयंती है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि कैसे हुई थी भीष्म पितामाह की पराजय..?

पौराणिक कथा - कहते हैं महाभारत युद्ध के दसवें दिन भी भीष्म पितामह ने पांडवों की सेना में भयंकर मारकाट मचाई थी. जी हाँ, और यह देखकर युधिष्ठिर ने अर्जुन से भीष्म पितामह को रोकने के लिए कहा था. कहते हैं अर्जुन शिखंडी को आगे करके भीष्म से युद्ध करने पहुंचे. शिखंडी को देखकर भीष्म ने अर्जुन पर बाण नहीं चलाए और अर्जुन अपने तीखे बाणों से भीष्म पितामह को बींधने लगे. इस प्रकार बाणों से छलनी होकर भीष्म पितामह सूर्यास्त के समय अपने रथ से गिर गए. उस समय उनका मस्तक पूर्व दिशा की ओर था. उन्होंने देखा कि इस समय सूर्य अभी दक्षिणायन में है, अभी मृत्यु का उचित समय नही हैं, इसलिए उन्होंने उस समय अपने प्राणों का त्याग नहीं किया.

युधिष्ठिर को दिया धर्म ज्ञान - पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि इस समय पितामह भीष्म बाणों की शैय्या पर हैं. आप उनके पास चलकर उनके चरणों को प्रणाम कीजिए और आपके मन में जितने भी संदेह हो, उनके बारे में पूछ लीजिए. श्रीकृष्ण की बात मानकर युधिष्ठिर भीष्म पितामह के पास गए और उनसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का ज्ञान प्राप्त किया. युधिष्ठिर को ज्ञान देने के बाद भीष्म पितामह ने उनसे कहा कि अब तुम जाकर न्यायपूर्वक शासन करो, जब सूर्य उत्तरायण हो जाए, उस समय फिर मेरे पास आना.

ऐसे त्यागे भीष्म पितामह ने अपने प्राण - कथा के अनुसार जब सूर्यदेव उत्तरायण हो गए तब युधिष्ठिर सहित सभी लोग भीष्म पितामह के पास पहुंचे. उन्हें देखकर भीष्म पितामह ने कहा कि इन तीखे बाणों पर शयन करते हुए मुझे 58 दिन हो गए हैं. उन्होंने श्रीकृष्ण को संबोधित करते हुए कहा कि अब मैं प्राणों का त्याग करना चाहता हूं. ऐसा कहकर भीष्मजी कुछ देर तक चुपचाप रहे. इसके बाद वे मन सहित प्राणवायु को क्रमश: भिन्न-भिन्न धारणाओं में स्थापित करने लगे. भीष्मजी का प्राण उनके जिस अंग को त्यागकर ऊपर उठता था, उस अंग के बाण अपने आप निकल जाते और उनका घाव भी भर जाता. भीष्मजी ने अपने देह के सभी द्वारों को बंद करके प्राण को सब ओर से रोक लिया, इसलिए वह उनका मस्तक (ब्रह्म रंध्र) फोड़कर आकाश में चला गया. इस प्रकार महात्मा भीष्म के प्राण आकाश में विलीन हो गए.

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