नई दिल्ली : शहनाई के जादूगर भारतरत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. शहनाई वादन में बिस्मिल्लाह खान ने भारत को विश्व में एक अलग पहचान दिलाई हैं. शहनाई से लोगों के दिलों को जीतने वाले और उन पर राज करने वाले भारतरत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की आज पुण्यतिथि है.
वह सन 1969 में 'एशियाई संगीत सम्मेलन' के 'रोस्टम पुरस्कार' तथा अनेक अन्य पुरस्कारों से सम्मानित हैं. वर्ष 1947 में जब देश अपनी आज़ादी का जश्न मना रहा था तो लालकिले पर भारत के तिरंगे के साथ बिस्मिल्लाह ख़ान की शहनाई भी वहाँ भाई चारे का सन्देश दे रही थी. संगीत-सुर और नमाज़ इन तीन चीजों में ही बिस्मिल्लाह ख़ां ने अपनी ज़िंदगी बिताई. उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने देश और दुनिया के अलग अलग हिस्सों-कस्बों में अपनी शहनाई का जादू दिखाया हैं. पूरे जीवन काल में उन्होंने ईरान, इराक, अफगानिस्तान, जापान, अमेरिका, कनाडा और रूस जैसे अलग-अलग मुल्कों में अपनी शहनाई की आवाज़ से लोगों को मन्त्र मुग्ध किया हैं. बिस्मिल्ला ख़ाँ शहनाई को अपनी बेगम कहते थे.
खान साहब को मिले सम्मान
-सन 1956 में बिस्मिल्लाह ख़ाँ को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
-सन 1961 में उन्हें पद्म श्री से नवाज़ा गया.
-सन 1968 में उन्हें पद्म भूषण से नवाज़ा गया.
-सन 1980 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.
-2001 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया.
-मध्य प्रदेश में उन्हें सरकार द्वारा तानसेन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.
उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का जन्म बिहार के डुमरांव में 21 मार्च 1916 को एक मुस्लिम परिवार में पैगम्बर खां और मिट्ठन बाई के यहां हुआ था. शहनाई को गलियों से निकालकर शास्त्रीय संगीत का दर्जा दिलाने वाले इस जादूगर का 21 अगस्त, 2006 को 90 वर्ष की आयु में इनका निधन हो गया.
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