जब भगवान बुद्ध ने दिया था यह अनोखा ज्ञान
जब भगवान बुद्ध ने दिया था यह अनोखा ज्ञान
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हम जानते हैं कि संसार में अलग-अलग लोगों पर एक ही वस्तु का अलग-अलग प्रकार से प्रभाव पड़ता है. जी हाँ, दुनिया में कई लोग एक ही समारोह में जाते हैं, पर उनमें से किसी को वही आयोजन बहुत अच्छा लगता है तो किसी को बहुत खराब. ऐसे में एक ही प्रकार की भोजन की थाली को कोई अच्छा बताता है तो कोई खराब. यह सब होता है व्यक्ति की अपनी भावना के कारण. अब आज हम आपको इस संदर्भ में एक कहानी बताने जा रहे हैं जो प्रेरणादायी है. यह कहानी भगवान बुद्ध की है.

कहानी- एक बार भगवान बुद्ध किसी स्थान पर अपने श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे. अपने अनुयायियों में ज्ञान का प्रकाश बांटने के बाद अपनी बात समाप्त करते हुए तथागत ने कहा- जागो! समय निकला जा रहा है. इसके बाद उन्होंने अपना आसन छोड़ दिया और लोगों की भीड़ भी धीरे-धीरे अपने मार्ग पर जाने लगी. प्रवचन समाप्त कर बुद्ध अपने प्रिय शिष्य आनंद के साथ एक स्थान पर जाकर बैठ गए. थोड़ी ही देर में एक वेश्या उनके पास आई और उन्हें प्रणाम करके बोली- प्रभु! मैं आपके प्रवचनों के आनंद में डूब गई थी और मुझे समय का ज्ञान ही ना रहा था. जैसे ही आपने कहा कि जागो, समय निकला जा रहा है, मुझे तुरंत याद आया कि आज तो मुझे एक समारोह में नृत्य करने जाना था. अब मैं तुरंत ही उस स्थान के लिए निकलती हूं.

थोड़ी देर बाद एक अन्य व्यक्ति उनके पास आया और चरणवंदन कर बोला- हे प्रभु! मैं एक डाकू हूं. मैं आपके प्रवचनों में समय का भान भूल गया. मुझे एक जगह डाका डालने जाना था और मेरे साथी मेरी राह देखते होंगे, पर मैं सब कुछ भूल गया. जैसे ही आपने कहा कि जागो, समय निकला जा रहा है, मुझे तुरंत अपना काम याद आ गया. अब मैं डाका डालने जाता हूं. इसके बाद एक वृद्ध व्यक्ति तथागत के पास आया और चरणों में बैठकर बोला- हे भगवन्! मैं एक व्यापारी हूं. मैंने अपना पूरा जीवन केवल और केवल धन कमाने, बढ़ाने और संचय करने में बिताया है. आज जैसे ही आपने कहा कि जागो, समय निकला जा रहा है, तो मुझे ज्ञान हुआ कि मैंने पूरा जीवन व्यर्थ के कामों में व्यय कर दिया. अब मैं निर्वाण प्राप्ति की राह पर जाता हूं. सबके जाने के बाद बुद्ध मुस्कुराकर बोले- आनंद! देखा तुमने, मैंने केवल एक वाक्य कहा कि जागो, समय निकला जा रहा है.

उस एक वाक्य का कितने ही लोगों ने कितने ही प्रकार से अर्थ निकाला. यही जीवन का, व्यक्ति के मन का सच है. वास्तव में प्रवचन सुनने तो बहुत से लोग जाते हैं, पर उनमें बताई गई बातों को कौन, किस अर्थ में लेता है, यह उसकी अपने मन की भावना पर निर्भर करता है. यदि कोई वास्तव में निर्वाण प्राप्त करना चाहता है, तो उसे अपने मन को साफ करना पड़ेगा. जिसका मन साफ होगा, वही गुरु की बताई बातों को ज्यों का त्यों ग्रहण कर पाएगा. जो स्वयं कोरा होगा, वही ज्ञान के रंग में रंग पाएगा. मन बहलाने या समय बिताने के लिए तो कोई भी प्रवचन सुन सकता है, उसका सार वही ग्रहण कर सकेगा, जो सच्चे मन से उसमें मन रमाएगा. यही जीवन का सत्य है दोस्तों. वस्तु वही है, उसके प्रति भाव व्यक्ति की अपनी भावना के अनुरूप ही पैदा होंगे. यदि आप प्रेम से देखेंगे, तो हर वस्तु में प्रेम दिखेगा. अगर मन में कपट होगा, तो हर व्यक्ति आपको कपटी मालूम होगा. सब अपने भीतर की भावना का खेल है.

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