भारत को आजादी दिलाने के लिए भगत सिंह ने दे दी थी हंसते हंसते जान
भारत को आजादी दिलाने के लिए भगत सिंह ने दे दी थी हंसते हंसते जान
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भगत सिंह एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जो भारत की आजादी के लिए संघर्ष करते रहे। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष करते हुए भारत की आजादी के लिए अपनी जान दी। भगत सिंह ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत में ही अपनी भूमिका निभाई। उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा लाहौर से पूरी की थी और उनके इच्छाशक्ति और स्वतंत्रता के प्रति जिज्ञासा उन्हें राष्ट्रवादी बनाया। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया और विभिन्न स्वतंत्रता संगठनों में अपनी भूमिका निभाई। भगत सिंह ने 1928 में हुए सांभर में हुए कार्रवाई के बाद जेल में काफी समय बिताया था।

भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले के बंगा गांव में हुआ था, जो उस वक़्त ब्रिटिश भारत था तथा आज पाकिस्तान है। 5वीं तक की पढ़ाई बंगा के गांव के विद्यालय में करने के पश्चात् उनका प्रवेश लाहौर के डीएवी विद्यालय में कराया गया। 1923 में उन्होंने लाहौर के नेशनल कालेज में BA की पढ़ाई के लिए प्रवेश लिया, जिसकी स्थापना दो वर्ष पूर्व महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के जवाब में लाला लाजपत राय द्वारा की गई थी। हालांकि भगत सिंह अपनी बीए पूरी नहीं कर सके तथा उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने की वजह से अंग्रेजों की गिरफ्तारी से बचने के लिए अंडरग्राउंड होना पड़ा था। दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से सेवानिवृत प्रोफेसर चमन लाल ने भगत सिंह के जीवन पर शोध किया है। प्रोफेसर चमन लाल बोलते हैं कि शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने अपने सारे जीवनकाल में सिर्फ सफेद पगड़ी ही पहनी है। सिर्फ अंग्रेजी शासन काल के चलते जब ननकाना साहिब जाने वाले जत्थों पर जुल्म किया जा रहा था, उस वक़्त अंग्रेजों के खिलाफ विरोध जताने के लिए भगत सिंह ने काली पगड़ी पहनी थी। भगत सिंह ने उस वक़्त ननकाना साहिब जाने वाले जत्थों के लिए पानी तथा खाने का लंगर लगाया था। 

आज उनकी पुण्यतिथि परर हम आपके लिए लेकर आए हैं भगत सिंह का सबसे चर्चित लेख 'मैं नास्तिक क्यों हूँ ?'  एक नया प्रश्न उठ खड़ा हुआ है। क्या मैं किसी अहंकार के कारण सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी तथा सर्वज्ञानी ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास नहीं करता हूँ? मेरे कुछ दोस्त – शायद ऐसा कहकर मैं उन पर बहुत अधिकार नहीं जमा रहा हूँ – मेरे साथ अपने थोड़े से सम्पर्क में इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये उत्सुक हैं कि मैं ईश्वर के अस्तित्व को नकार कर कुछ ज़रूरत से ज़्यादा आगे जा रहा हूँ और मेरे घमण्ड ने कुछ हद तक मुझे इस अविश्वास के लिये उकसाया है। मैं ऐसी कोई शेखी नहीं बघारता कि मैं मानवीय कमज़ोरियों से बहुत ऊपर हूँ। मैं एक मनुष्य हूँ, और इससे अधिक कुछ नहीं। कोई भी इससे अधिक होने का दावा नहीं कर सकता। यह कमज़ोरी मेरे अन्दर भी है। अहंकार भी मेरे स्वभाव का अंग है। अपने कामरेडो के बीच मुझे निरंकुश कहा जाता था। यहाँ तक कि मेरे दोस्त श्री बटुकेश्वर कुमार दत्त भी मुझे कभी-कभी ऐसा कहते थे। 

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