क्या केवल भीख मांगकर गुजारा करने का विकल्प हैं डांस बार
क्या केवल भीख मांगकर गुजारा करने का विकल्प हैं डांस बार
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एक बार फिर बार के शौकीनों की चांदी होने वाली है। ऐश और आराम करने के लिए उन्हें जल्द ही ऐसा स्थान मिलने वाला है जहां वे नर्तकियों के नृत्य कां आनंद लेंगे। यूं तो आधुनिक दौर में इसे डांस बार कहा जाता है मगर नर्तकियों का ट्रेडिशन काफी पुराना है। राजाओं के दरबारों में भी नृत्य के आयोजन हुआ करते थे यहां पर नृत्यांगनाऐं और राजनर्तकियां अपने नृत्य को प्रस्तुत करती थीं। इसमें राजा और उसके दरबारी अपना मनोरंजन किया करते थे। हालांकि यह उस समय की परंपरा के अनुसार था और यह अपेक्षाकृत शालीन तरीके से होते थे। इसके बाद नृत्य कोठों तक पहुंच गया।

यहां नृत्य करने वाली महिलाओं को तवायफ का नाम देकर एक अलग ही श्रेणी में रखा गया। ये तवायफें समाज में उपेक्षित होती थीं लेकिन इन्हें दिल बहलाने का साधन मान लिया गया। यहां अश्लील नृत्य होने लगे इसके बाद इनकी राह भी देह व्यापार की ओर मुड़े गई। बंद गलियां में और गलियों के अंदर कई कमरों में सिमटी जिंदगियों में देह व्यापार होने लगे। इस तरह की विकृति आने के बाद और समय बदलने के बाद यहां पर नृत्य सिमट गया और देह व्यपाार बढ़ने लगा। इसी का आधुनिक स्वरूप मायानगरी मुंबई में डांस बार के तौर पर देखने को मिल रहा है।

हालांकि ये डांस बार काफी अलग हैं यहां पर  क्लबों, रेस्टोरेंट और बार्स में बार गर्लस डांस करती हैं। मगर है ये भी उसी तरह से। अर्थात् पुरानी शराब को नई बोतल में भरकर रिपैक करने जैसा कार्य किया गया है। महाराष्ट्र सरकार ने जब वर्ष 2005 से इन बार्स पर लगाम लगाना प्रारंभ किया तो जमकर शोर मचा। ये डांस बार बंद हो गए। मगर फिर डांस बार संचालकों ने अपना एक संघ बनाकर आवाज उठाई और अब सर्वोच्च न्यायालय इनके अधिकार में निर्णय दे रहा है।

हालांकि न्याय की सर्वोच्च आसंदी पर विराजमान सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने जब भी जनहित का निर्णय किया है। उनका तराजू कभी असंतुलित नहीं रहा। जनहित के मसले पर सर्वोच्च न्यायालय ने अनुकरणीय न्याय दिया है। भारतीय न्याय व्यवस्था की मजबूती का आधार भी यही है और इसीलिए प्रत्येक व्यक्ति को न्यायिक प्रणाली में पूर्ण विश्वास है। मुंबई में डांस बार खुलने के निर्णय को न्यायालय ने इस शर्त पर सहमति दी है कि यहां पर अश्लीलता न हो। मगर यह सभी जानते हैं कि डांस बार में शुरूआत ही अश्लील तरह के नृत्य से होती है।

इन डांस बार्स से कई बार पुलिस ने अनैतिक कार्य होते पकड़े हैं। कई बार यहां पर अवैध सैक्स रैकेट तक पकड़े गए। जिसके चलते महाराष्ट्र सरकार ने इसे बंद कर दिया। मगर न्यायालय के सामने बार गर्लस के रोजगार का सवाल आया और न्यायाधीशों ने तर्क दिया कि सड़कों पर भीख मांगने से अच्छा है डांस बार में काम करना लेकिन क्या आज की नारी इतनी कमजोर है कि वह अपने जीवन यापन के लिए भले ही सड़कों पर भीख न मांगे मगर इसके एवज में उसे अपने तन की नुमाईश करवानी पड़े।

क्या सरकार द्वारा आदिवासी महिलाओं के लिए और गरीब वर्ग की महिलाओं के लिए संचालित किए जाने वाले आत्मनिर्भरता के प्रोजेक्ट्स फाईलों में बंद होकर धूल खा रहे हैं। क्या ये महिलाऐं भी बांस, जूट, कपास आदि का लघु उद्योग कर खुद को स्वसहायता समूह के निर्माण से नहीं जोड़ सकती। क्या इन महिलाओं को सिलाई प्रशिक्षण से नहीं जोड़ा जा सकता। क्या इनके माध्यम से महिला बैंकों की स्थापना नहीं  की जा सकती।

यदि यह सब किया जा सकता है तो फिर ऐसा क्यों कहना पड़ रहा है कि सड़कों पर भीख मांगने से अच्छा है डांस बार खोले जाऐं। फिर सरकार इस बात को तय भी नहींे कर पा रही है कि डांस बार्स में किस तरह से वह अश्लीलता को रोकेगी। सुप्रीम कोर्ट ने वहां पर सीसीटीवी लगाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है साथ ही यह भी कहा है कि डांस बार में बार गर्लस पर पैसे न उछाले जाऐं।

ऐसे में डांस बार्स में अश्लीलता न होने देने और डांस बार के केवल डांसिंग स्टेज के तौर पर संचालित होने का यक्ष प्रश्न महाराष्ट्र सरकार के सामने है। यदि बार संचालक अपने कोड आॅफ इथिक्स से यह तय करते हैं कि वे सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का पालन कर बार संचालित करेंगे तो इस मसले का कुछ समाधान हो सकता है। मगर यह वास्तविकता से कितना निकट होगा यह तो समय को ही तय करना है। 

'लव गडकरी'

 

 

 

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