गंगा गंगेति यो ब्रूयात, योजनाम् शतैरपि। मुच्यते सर्वपापेभ्यो, विष्णुलोके स: गच्छति॥
गंगा गंगेति यो ब्रूयात, योजनाम् शतैरपि। मुच्यते सर्वपापेभ्यो, विष्णुलोके स: गच्छति॥
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धन प्राप्ति के साथ अच्छा व्यवसाय और बेहतरीन नौकरी के लिए भगवान शिव को बिल्वपत्र कमल और गंगाजल चढ़ाएं। हर तरह की सम्पन्नता आन लगेगी। तरक्की और सफलता पाने के लिए गंगाजल को हमेशा अपने पूजा स्थल और किचन में रखें। भगवान शिव को गंगाजल चढ़ाने से वे अति प्रसन्न होते हैं। इससे इंसान को मोक्ष और शुभ लाभ दोनों ही मिलते हैं स्वर्ग से गंगा का धरती पर अवतरण विशेष प्रयोजन से हुआ था।

इस आख्यान के अनुसार राजा सगर के साठ हज़ार पुत्र अपने कुकर्मों की आग में जल रहे थे। उनकी कष्टनिवृति गंगाजल से ही हो सकती थी। सगर के वंशज भगीरथ के कठोर तप एवं पुरुषार्थ से गंगा धरती पर आई। सगरपुत्र इसके शीतल अभिसिंचन से ताप मुक्त हुए, साथ ही असंख्यों के लिए गंगा जीवनदायनी माँ बनी। अपनी इस अनुपम महिमा के कारण गीता, गायत्री, गौ एवं हिमालय की ही तरह गंगा भी भारतीय संस्कृति के आधार स्तंभों में से एक है। इसके बिना भारतीय संस्कृति एवं इतिहास की कल्पना दुष्कर है।

महाभारत की कहानी गंगामाता से आरंभ होती है। गंगा तट पर स्थित बिठूर में रहकर महर्षि वाल्मीकि ने महाग्रंथ रामायण की रचना की थी। यही विश्व की एकमात्र नदी है, जिसे माता के नाम से पुकारा जाता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्रोतसामस्मि जाहन्वी अर्थात् जल स्रोतों में मैं जाहन्वी; गंगाध्द हूँ, कहकर इसे अपना स्वरूप बताया है। गंगा का महिमागान करते हुए शास्त्र कहते हैं - गंगा गंगेति यो ब्रूयात, योजनाम् शतैरपि। मुच्यते सर्वपापेभ्यो, विष्णुलोके स: गच्छति॥ अर्थात् जो गंगा का सैकड़ों योजन दूर से भी स्मरण करता है, उसके समस्त पापों का नाश हो जाता है। धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व के अतिरिक्त गंगा के किनारे अनेक सुरम्य स्थल हैं।

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