कोई 12 वीं है तो कोई पोस्टग्रेजुएट, अकाउंट तक रखते हैं भिखारी
कोई 12 वीं है तो कोई पोस्टग्रेजुएट, अकाउंट तक रखते हैं भिखारी
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नई दिल्ली : देश में भिखारियों की परेशानी दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है। हालात ये हैं कि भिखारियों को हर सिग्नल पर, सड़क पर और हर गली - हर घर के आगे भीख मांगते हुए देखा जा सकता है। मगर आप जानकर हैरान होंगे कि ये भिखारी इतने लाचार और गरीब नहीं हैं जितने ये भीख मांगते वक्त दिखते हैं। इनमें से अधिकांश का तो बैंकों में अकाउंट तक है। आप समझ रहे होंगे कि इन्होंने जन धन योजना के तहत खाता खुलवाया है, अरे नहीं बल्कि ये तो बैंकों को मोटे पैमाने पर चिल्लरें उपलब्ध करवाते हैं। कई गल्ला व्यापारी ऐसे हैं जो भिखारियों से चिल्लर प्राप्त करते हैं बदले में उन्हें बंधे नोट देते हैं। यही नहीं ये भिखारी अच्छी शैक्षणिक योग्यता भी रखते हैं। 

मिली जानकारी के अनुसार उच्च माध्यमिक या फिर इससे भी अधिक पढ़ाई करने वाले करीब 3 हजार से भी अधिक के पास पेशेवर या फिर ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल करने वाले और पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई तक कर चुके हैं। इस तरह के आंकड़े वर्ष 2011 की जनगणना से प्राप्त हुए हें। जिसमें यह कहा गया है कि उनका शैक्षणिक स्तर रिपोर्ट से है। आंकड़ों द्वारा यह कहा गया है कि भिखारी बनना उनकी पसंद नहीं है बल्कि वे मजबूरीवश भिखारी बने हैं।

कक्षा 12 वीं उत्तीर्ण 45 वर्ष के दिनेश खोधाभाई तो अंग्रेजी तक बोलते हैं। उन्होंने कहा कि वे गरीब हो सकते हैं मगर वे ईमानदार हैं। मैं दिन के 200 रूपए से भी अधिक कमाई करता हूं। यह उनकी अंतिम नौकरी से अधिक है। उन्होंने कहा कि वे एक वाॅर्डबाॅय का कार्य करते थे उन्हें दिन में 100 रूपए तक मिल जाया करते थे। मगर अब वे अहमदाबाद के भद्रकाली मंदिर में 30 लोगों के साथ भीख मांगते हैं। सुधीर बाबूलाल 52 वर्ष के हें वे बीकाॅम तृतीय वर्ष में थे। वे 150 रूपए कमाते हैं।

अहमदाबाद के वीजापुर गांव से सुधीर चले तो उन्हें अच्छी नौकरी की उम्मीद थे। उनहें नौकरी मिल गई मगर 10 घंटे के काम के एवज में माह में 3 हजार रूपए ही मिलते थे। जब उनकी पत्नी उन्हें छोड़कर चली गई तो वे नदी किनारे भीख मांगने लगे। 52 वर्षीय दशरथ एमकाॅम कर चुके हैं मगर अब उनके पास प्रायवेट जाॅब तक नहीं है। उनकी मां अस्पताल में भर्ती है। मुफ्त में खाना खिलाने वाली संस्थाओं के माध्यम से वे अपना जीवन यापन कर रहे हैं। 

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