दंगे की सच्चाई तक नहीं पहुंच पाई फिल्म ‘31 अक्टूबर’
दंगे की सच्चाई तक नहीं पहुंच पाई फिल्म ‘31 अक्टूबर’
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फिल्म का नाम- 31 अक्टूबर 
डायरेक्टर- शिवजी लोटन पाटिल 
स्टार कास्ट- वीर दास, सोहा अली खान, दीपराज राणा, लक्खा लखविंदर सिंह, नागेश भोंसले
अवधि- 1 घंटा 42 मिनट
सर्टिफिकेट- ए
रेटिंग- 2 स्टार

भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा की उनके सुरक्षा गाड्र्स द्वारा हत्या करने के सीख विरोधी दंगे की त्रासदी पर बनी यह फिल्म लचर स्क्रिप्ट की वजह से मूल विषय को छू नहीं पाती है। मराठी फिल्म ‘धग’ के लिए नेशनल अवाॅर्ड विजेता डायरेक्टर शिवजी लोटन पाटिल ने डायरेक्शन में तो कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन स्क्रीप्ट की सीमा से वह परे नहीं जा सके। यही वजह है कि फिल्म 31 अक्टूबर की त्रासदी को छूए बिना ही एक ड्रामाभर बनकर रह गई। सुरक्षा गाड्र्स के अपराध के दुष्परिणाम पूरी कौम को झेलना पड़ा। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, उन दंगों में 2186 सिखों की जान चली गई थी। जबकि हकीकत में यह आंकड़ा 9 हजार से उपर माना जाता है। पूरी दिल्ली सीख विरोधी दंगों से सन गई थी। गलियों में, घरों में, मोहल्लों में, सड़कों पर सीखों को बेरहमी से मारा गया था। इसमें सत्ताधारी सरकार के कई नामचीन नेताओं के नाम प्रकाश में आए। कई जांच आयोगों ने जांच की। लेकिन आज तक उन गुनहगारों को सजा नहीं मिल पाई। 

कहानी-कम बजट में बनी इस फिल्म की कहानी दिल्ली बेस्ड है। यह एक सीख परिवार देविंदर सिंह;वीरदासद्ध और उसकी पत्नी तेजिंदर कौर;सोहाअली खानद्ध की हैं। इंदिरा गांधी के हत्या के बाद समूची दिल्ली ‘खूनी दिल्ली’ बन जाती है। बेरहमी से निर्दोषों की हत्या कर दी जाती है। इन दंगों की भेंट देविंदर और तेजिंदर का परिवार, दोस्त जान बचाने की कोशिश में लग जाते हैं। 31 अक्टूबर 1984 की इस घटना में देविंदर-तेजिंदर जैसे कई लोगों के परिवार शामिल थे। जिन्हें आजतक न्याय नहीं मिला है। क्या देविंदर-तेजिंदर परिवार इस भयानक और खौफनाक रात से बच पाते है? क्या उन्हें उचित न्याय मिलता है? यह जानने के लिए थियेटर पहुंचने की जरूरत पड़ेगी।

कमियां-
शिवजी पाटिल लोटन इस गंभीर मुद्दे को फिल्माने की कोशिशभर की। स्क्रिप्ट की लचरता की वजह से फिल्म के डाॅयलाॅग आॅडियंस से संवाद नहीं कर पाते हैं। फिल्म के निर्देशन की भी कुछ कमियां साफ नजर आती हैं। फिल्म का सब्जेक्ट गंभीर होने के बावजूद वह दर्शंको प्रभावित नहीं कर पाता है। निर्देशक ने इंदिरा की हत्या के दंगे की भयावता को पूरी उसी रूप में फिल्मा नहीं सकें। अभिनेता वीरदास और अभिनेत्री सोहाअली खान ने भरपूर कोशिश की लेकिन वह भी स्क्रीप्ट सीमा में बंधकर रह गए। फिल्म आम दर्शकों की बजाय फिल्म फेस्टिवल में दिखाने लायक है। वैसे, फिल्म पहले भी कई फिल्म फेस्टिवल में दिखाई जा चुकी है। 
 
क्यों देखें-

फिल्म एक्टर वीरदास और सोहा अली खान के फैन देख सकते हैं। 

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