बीफ और मीट से खेल रहे कुर्सी का खेल
बीफ और मीट से खेल रहे कुर्सी का खेल
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देशभर में बीते कुछ समय से विवादित बयानबाजियों और आक्रामक राजनीति का दौर है। राजनीतिक दल छोटी - छोटी बातों को जबरन तूल देने में लगे हैं। एक क्षेत्र की समस्या से सारे देश को प्रभावित होना पड़ जाता है। अब तो बहस इस बात पर होने लगी है कि क्या खाया जाए या फिर क्या न खाया जाए।

भोजन में भी कट्टरपंथी बनाम हिंदूवादी रूख अपनाया जा रहा है। लवजिहाद, घर वापसी के बाद अब लगता है। मीट और बीफ राजनेताओं के लिए नया हथियार बन गया है। लगता है उपद्रवियों को किसी धार्मिक स्थल पर अभक्ष्य सामग्री फैंकने की भी जरूरत नहीं। बस मीट को बैन करवा दीजिए या पर्यूषण का हवाला दीजिए इनका काम हो जाएगा।

जी हां, जिस तरह से पर्यूषण पर्व का हवाला देकर मीट बैन पर बवाल मचाया गया। उससे फिज़ा ने राजनीतिक रंग ले लिया। इससे भी गंभीर बात तो तब हो गई जब गुजरात सरकार ने बीफ को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताया और कट्टरपंथियों ने बीफ पर प्रतिबंध का विरोध कर दिया। इस विरोध में अलगाववादी भी कूद पड़े और जम्मू कश्मीर से मुंबई तक गहमागहमी भरा माहौल रहा।

मज़े की बात देखिए भारत के राज्यों में स्थित शहरों में होटलों पर मीट और आमलेट के शौकीन पहुंचकर इसका लुत्फ उठाते रहे। मांस विक्रय की दुकानों पर मांस का विक्रय होता रहा। मगर बेवजह देश की फिज़ा को सांप्रदायिक रंग दे दिया गया। हालांकि जिन मान्यता में पर्यूषण पर्व को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है मगर दूसरों की सुविधा पर बैन लगाकर खुद को जितेंद्रिय साबित करने का जैनों का यह फाॅर्मूला समझ से परे है। इस मामले में विरोध करने वाले भी विरोध को इस कदर तूल देने में लगे रहे जैसे यह उनके लिए जीवन - मरण का प्रश्न हो।

दूसरी ओर गौ मांस को लेकर फिज़ा धार्मिक उन्माद का ही माहौल बना दिया गया। हर दिन कटती गायों की ओर किसी का ध्यान नहीं गया इसके इतर बीफ पर प्रतिबंध को राजनीतिक हवा दी जाती रही। इन वाकयों से लगता है देश में बरसों से चले आ रहे धार्मिक कट्टरपंथ और हिंदूत्ववाद को नए रैपर में फिट कर  देश के सामने प्रस्तुत किया गया है।

जिस तरह से नेताओं द्वारा लगातार हिंदूत्ववादी बयानबाजियां की जाती रही हैं वह किसी हिडन एजेंडे को दर्शाता है। तो दूसरी ओर इस तरह के मसले उठाकर सीधे तौर पर वर्गों को बांटा जा रहा है। राजनेताओं ने लोगों को बांटकर वोट बटोरने के लिए धर्म आधारित जनसंख्या का फार्मूला निकाल लिया मगर इस मामले पर गर्म हुई हवा ठंडी पड़ गई तो लगता है उन्होंने बीफ और मीट की गर्मी से माहौल को गर्माने का प्रयास किया है। हालांकि स्वास्थ्यप्रद चेतावनी देना और पशु क्रूरता अधिनियम की बातें कर इस संबंध में जागरूकता फैलाना गलत नहीं है लेकिन इसे बेवजह तूल देकर वोट बैंक की राजनीति करना देश की एकता के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। 

"लव गडकरी"

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