बीसीसीआई की मुश्किलें बढ़ी
बीसीसीआई की मुश्किलें बढ़ी
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न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा समिति की अधिकतर सिफारिशों से छेड़छाड़ नहीं करते हुए न्यायमित्र (एमिकस क्यूरी) गोपाल सुब्रमण्यम ने क्रिकेट बोर्ड की मुश्किलें बड़ा दी है. न्यायमित्र ने केवल एक बिंदु पर बदलाव का सुझाव दिया है और वह वर्तमान के तीन सदस्यीय चयन पैनल के बजाय पूर्व के पांच सदस्यीय पैनल पर लौटना है. उन्होंने ‘ केवल टेस्ट खिलाड़ी ’ की शर्त को कम से कम 20 प्रथम श्रेणी मैच करने का भी सुझाव दिया है. बीसीसीआई के अधिकतर पदाधिकारी जिन पांच सिफारिशों को विवादास्पद मानते हैं उनमें एक राज्य एक मत , 18 साल (9+9) का कार्यकाल , प्रत्येक तीन साल के बाद विश्राम, 70 साल की उम्र तक ही पदाधिकारी बने रहने की शर्त तथा पदाधिकारियों और वेतनभोगी कर्मचारियों ( सचिव एवं सीईओ ) के बीच कार्यों का आवंटन शामिल हैं.

लगभग सभी मान्यता प्राप्त इकाइयों की इन बिंदुओं पर राय एक जैसी है, लेकिन उनको इससे निराशा हो सकती है, क्योंकि उच्चतम न्यायालय को 27 अक्टूबर को सौंपे गए मसौदा संविधान के संदर्भ में न्यायमित्र के सुझाव मूल सिफारिशों के अनुरूप हैं. एक राज्य एक मत के मामले में न्यायमित्र ने सुझाव दिया है कि रेलवे को महिला क्रिकेट में उसके योगदान को देखते हुए संस्थानिक इकाइयों में एक मतदाता सदस्य के रूप में विचार किया जा सकता है.

लेकिन मतदाता रेलवे का अधिकारी नहीं, बल्कि कोई पूर्व खिलाड़ी होना चाहिए. सेना, विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय क्रिकेट क्लब ( एनसीसी ) और क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया ( सीसीआई ) अपना मताधिकार वापस नहीं पा सकेंगे. न्यायमित्र ने इसके साथ ही स्पष्ट किया कि कोई भी सदस्य नौ साल की संचयी अवधि के लिए बीसीसीआई और राज्य संघों का पदाधिकारी बन सकता है, जिसमें लोढ़ा सुधारों के अनुसार तीन साल का विश्राम का समय रहेगा.

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