बंसत पंचमी का त्यौहार इस बार 9 और 10 फरवरी को मनाया जाने वाला है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं बसंत पंचमी का सामाजिक, पौराणिक महत्व.
बसंत पंचमी का सामाजिक महत्व - आप सभी को बता दें कि भारतीय पंचांग में 6 ऋतुएं होती हैं और इनमें से बसंत को 'ऋतुओं का राजा' कहा जाता है. कहते हैं बसंत फूलों के खिलने और नई फसल के आने का त्योहार है और ऋतुराज बसंत का बहुत महत्व है. ऐसे में ठंड के बाद प्रकृति की छटा देखते ही बनती है और इस मौसम में खेतों में सरसों की फसल पीले फूलों के साथ, आमों के पेड़ों पर आए फूल, चारों तरफ हरियाली और गुलाबी ठंड मौसम को और भी खुशनुमा बना देती है. कहते हैं अगर सेहत की दृष्टि से देखा जाए तो यह मौसम बहुत अच्छा होता है और इंसानों के साथ पशु-पक्षियों में नई चेतना का संचार होता है.
बसंत पंचमी का पौराणिक महत्व- पुराणों की माने तो सृष्टि की रचना करते समय ब्रह्माजी ने मनुष्य और जीव-जंतु की रचना की है. वहीं उस दौरान उन्हें महसूस हुआ कि कुछ कमी रह गई है इस वजह से उस दौरान सभी जगह सन्नाटा छाया रहता है और इस पर ब्रह्माजी ने अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे 4 हाथों वाली एक सुंदर स्त्री प्रकट हुई, जिसके एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में वरमुद्रा तथा अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी. वहीं ब्रह्माजी ने वीणावादन का अनुरोध किया. इसके बाद देवी ने वीणा का मधुर नाद किया जिस पर संसार के समस्त जीव-जंतुओं में वाणी व जलधारा कोलाहल करने लगी, हवा सरसराहट करने लगी. वहीं उस समय ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी 'सरस्वती' का नाम दिया जो आज पुरे विश्व में मशहूर है. आपको बता दें कि मां सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादिनी और वाग्देवी के नाम से पुकारते हैं.
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