जब पाकिस्तान से मैच होने पर शिवसैनिकों ने खोद दी थी पिच
जब पाकिस्तान से मैच होने पर शिवसैनिकों ने खोद दी थी पिच
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भारत और पाकिस्तान के क्रिकेट मैचों को न होने देने की धमकी दिए जाने के बाद यदि मैच होते तो क्रिकेट स्टेडियम में पिच ही खोद देना। हिंदूत्व को लेकर चर्चा करना। फिर देशभर के ज्वलंत विषयों पर बेबाकी से बयान देना और साथ ही शिवसैनिकों द्वारा हंगामाई कार्रवाई किए जाने की बात बाल ठाकरे हमेशा चर्चा में रहे। बाल ठाकरे का पुणे से मुंबई आने का सफर कार्टूनिस्ट के तौर पर शुरू हुआ लेकिन कार्टूनिस्ट के जीवन से बाहर निकलकर उन्होंने राजनीति में अपना मुकाम बनाया।

यही नहीं महाराष्ट्र की राजनीति के ही साथ उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति को अपने विचारों से आंदोलित किया। मुंबई के शिवाजी पार्क से शिवसेना की शुरूआत कर दादर को अपना गढ़ बना देने वाले बाल ठाकरे ने शिवसेना को महाराष्ट्र का प्रमुख राजनीतिक दल बना दिया। ऐसा दल जिसके हस्तक्षेप से मुंबई हिल जाती थी ऐसा दल जो विधानसभा में बड़े पैमाने पर सीटें झटकता रहा है, महाराष्ट्र की राजनीति में जिस दल को सरकार बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण घटक दल के तौर पर देखा जाता है।

बाल ठाकरे का जन्म 23 जनवरी 1926 को महाराष्ट्र के पुणे में हुआ। बाल ठाकरे के विचारों पर उनके पिता के प्रभावों का असर पड़ता है। उनके पिता केशव सीताराम ठाकरे ने संयुक्त महाराष्ट्र मूवमेंट के जाने - पहचाने चेहरे थे। बाल ठाकरे के पिता केशव सीताराम ठाकरे द्वारा भाषायी आधार पर महाराष्ट्र राज्य के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। समर्थक उन्हें बाला साहब कहकर संबोधित करते थे। 

 बाल ठाकरे का विवाह मीना ठाकरे से हुआ था। वर्ष 1966 में उनका निधन हो गया। मीना ठाकरे और बाल ठाकरे के तीन पुत्र हैं जिसमें बिंदुमाधव, जयदेव और उद्धव ठाकरे हैं। बिंदु माधव का एक सड़क दुर्घटना में 20 अप्रैल 1996 को निधन हो गया। उनकी मुंबई - पुण हाईवे पर मौत हो गई। 

बाल ठाकरे ने फ्री प्रेस जर्नल, मुंबई में कार्टूनिस्ट के तौर पर कार्य किया। जल्द ही उनके कार्टूनों को टाईम्स आॅफ इंडिया में स्थान मिला। उनके कार्टून टाईम्स आॅफ इंडिया में प्रकाशित होते थे। वर्ष 1960 में महाराष्ट्र में उन्होंने महाराष्ट्र में गुजराती और दक्षिण भारतीय लोगों की संख्या बढ़ने का विरोध भी किया। कालांतर में शिवसेना को उत्तरभारतीयों के विरोधी के तौर पर देखा जाने लगा।

दरअसल बड़े पैमाने पर बिहार से लोग विस्थापित होकर मुंबई और महाराष्ट्र में काम तलाशने आते थे हालांकि कई बिहारियों और उत्तरभारतीयों को बिहारियों और उत्तर भारतीयों की बाल ठाकरे ने कई मसलों में सहायता भी की लेकिन मराठी मानुष का मसला उन्होंने नहीं छोड़ा। उन्हें मराठी मानुष की चिंता लगी रहती थी। बाल ठाकरे ने न केवल एक भाषा वर्ग का साथ दिया बल्कि देशहित के मसले पर भी उन्होंने कई कार्य किए। 

पाकिस्तान के रवैये को उन्होंने निशाना बनाया। वे हिंदूवादी विचारधारा के समर्थक थे और आजीवन हिंदूवादी मसलों पर बेबाकी से अपने विचार रखते रहे। बालासाहेब ठाकरे संप्रदाय के खिलाफ विचार रखते, भाषा को लेकर अपनी लड़ाई लड़ते लेकिन महाराष्ट्र में रहने वाले अन्य भाषाओं के लोगों के साथ शिवसेना ने कभी भी अराजकता नहीं अपनाई।

बालासाहेब इन लोगों की भी सहायता करते थे मगर वे उन मसलों पर इनके विरोधी थे जिससे महाराष्ट्र के निवासियों की परेशानियां बढ़ती थीं। वर्ष 1966 में बाल ठाकरे ने शिवसेना का गठन किया। जिसका उद्देश्य मराठियों के हित की रक्षा करना था। नौकरियों, आवास की सुविधा मुहैया करवाने के लिए उन्होंने कार्य किया। हां बाला साहेब को हिंदू हृदय सम्राट के नाम से जाना गया। बाल ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना ने सामना नामक समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारंभ किया।

शिवसेना के कार्यकर्ता इस समाचार पत्र का संपादन, प्रबंधन संभालते इस समाचार पत्र में राष्ट्रीय मसलों पर शिवसेना बेबाकी से विचार रखती। बाद में इसे शिवसेना का मुखपत्र कहा जाने लगा। सामना की पत्रकारिता निर्भिक रही है। सामना में प्रकाशित लेख, संपादकीय और समाचार आज भी महत्वपूर्ण हैं। इसमें सरकारों के कामकाज का समीक्षात्मक उल्लेख भी किया जाता है। 

वर्ष 1992 में हुए बाबरी विध्वंस को लेकर बाला साहेब ठाकरे ने अपनी जिम्मदारी स्वीकर ली थी। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विवाद को निमंत्रण दे दिया। 1980 से उन्होंने हिंदुत्व के मसले पर अधिक जोर दिया। इस मसले पर उन्हें मतदान करने के अधिकार को तक गंवाना पडा मगर वे अपने मसले पर अडिग रहे। उनके द्वारा मंडल आयोग की सिफारिशों का विरोध भी किया गया। आरक्षण को लेकर उन्होंने बात की। 

बाल ठाकरे पर दलित समुदाय ने भरोसा दिखाया। मुंबई बम धमाके के बाद टाडा मामले में आरोपों का सामना करने वाले संजय दत्त का बाल ठाकरे ने साथ दिया उन्होंने उनके पक्ष में बात रखी। उत्तर भारतीयों का चेहरा कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन के साथ भी बाल ठाकरे रहे। उन्होंने बोफोर्स घोटाले में उनका समर्थन भी किया। उनके पुत्र उद्धव ठाकरे और उनके भतीजे राज ठाकरे ने शिवसेना को नया आयाम दिया।

राज ठाकरे शिवसेना का आक्राम चेहरा बने। मगर बाला साहेब के निधन के बाद राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नव निर्माण सेना का गठन किया। जिसके बाद शिवसेना और राज ठाकरे के रास्ते अलग हो गए लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में दोनों ही दलों का अच्छा खासा दखल रहा है।

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