जब एक हो जाएंगे ये पर्वत तो कोई नहीं कर पाएगा बद्रीनाथ धाम के दर्शन
जब एक हो जाएंगे ये पर्वत तो कोई नहीं कर पाएगा बद्रीनाथ धाम के दर्शन
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आप सभी जानते ही होंगे हिंदुओं के चार प्रमुख धाम होते हैं। इनमे से एक बद्रीनारायण (badrinath) तीर्थस्थल भगवान विष्णु के चतुर्थ अवतार नर एवं नारायण की तपोभूमि है। जी दरअसल हिमालय की तलहटी में बसे बद्रीनाथ धाम को ''धरती का वैकुण्ठ'' कहा जाता है। आप सभी को बता दें कि बद्रिकाश्रम यानि ''बदरी सदृशं तीर्थम् न भूतो न भविष्यति ''अर्थात बद्रीनाथ जैसा स्थान मृत्युलोक में न पहले कभी था न भविष्य में कभी होगा। आप सभी को बता दें कि अक्षय तृतीया (Akshaya tritiya) के मौके पर बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने जा रहे हैं तो हम आपको बताने जा रहे हैं भगवान बद्रीनाथ के बारे में कुछ रोचक बातें (badrinath temple mysterious facts) बताते हैं।

* ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु विग्रह रूप में यहां तपस्यारत हैं। जी हाँ और यहां के दिव्य दर्शन करने पर भगवान विष्णु के विग्रह को एकटक निहारने पर ऐसी अनुभूति होती है जैसे सामने साक्षात भगवान विष्णु हों।


* ऐसी मान्यता है कि जोशीमठ में जहां शीतकाल में बद्रीनाथ की चल मूर्ति रहती है। जी हाँ और वहां नरसिंह का एक मंदिर है। इसी के साथ शालिग्राम शिला में भगवान नरसिंह का अद्भुत विग्रह है। जी दरअसल इस विग्रह की बाईं भुजा पतली है और समय के साथ ये और भी पतली होती जा रही है। ऐसा माना जाता है जिस दिन इनकी कलाई मूर्ति से अलग हो जाएगी, उस दिन नर-नारायण पर्वत एक हो जाएंगे और इससे बद्रीनाथ का मार्ग बंद हो जाएगा इस वजह से कोई यहां दर्शन नहीं कर पाएगा।

* कहते हैं भगवान नारायण के वास के रूप में जाना जाने वाला बद्रीनाथ धाम आदि शंकराचार्य की कर्म स्थली रहा है। जी हाँ और आदि गुरु शंकराचार्य ने आठवीं सदी में मंदिर का निर्माण करवाया था।

* आप सभी को बता दें कि बद्रीनाथ धाम में ब्रह्मकपाल तीर्थ है जहां शिव जी को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। जी हाँ और यहां पितरों को पिंड तर्पण दिया जाता है। इसी के साथ भगवान बद्री विशाल के मंदिर परिसर में ही मां लक्ष्मी का मंदिर है। जी दरअसल बद्रीविशाल के दर्शन के बाद ही यहां भक्त मां लक्ष्मी के चरणों में शीश झुकाकर उनसे आशीर्वाद लेते हैं।

* आप सभी को बता दें कि बद्रीनाथ मंदिर में भगवान विष्णु के एक मीटर ऊंची काली पत्थर (शालिग्राम) की प्रतिमा है। जिसमें भगवान विष्णु ध्यान मुद्रा में सुशोभित है। जी हाँ और मंदिर के पुजारी शंकराचार्य के वंशज होते है जिन्हें रावल कहा जाता है। ये जब तक रावल के पद पर रहते हैं इन्हें ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करना होता है।

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