आज है बच्छ बारस, गाय और बछड़े के पूजन के बाद जरूर सुने यह कहानी
आज है बच्छ बारस, गाय और बछड़े के पूजन के बाद जरूर सुने यह कहानी
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भादवा महीने में कृष्ण पक्ष की बारस यानी द्वादशी तिथि को गोवत्स द्वादशी माना जाता है. इस दिन को बच्छ बारस के नाम से पुकारा जाता है और इस दिन महिलाएं श्रद्धापूर्वक गौ और उनके बछड़े का पूजन करती हैं. ऐसे में आज के दिन गाय के दूध से बने उत्पादों का उपयोग नहीं किया जाता है और इसी के साथ आज गेहूं और चाकू से कटी हुई वस्तु का इस्तेमाल नहीं करते हैं और ना ही सुई का उपयोग करते हैं. आपको बता दें कि बछ बारस देश के कई हिस्सों में मनाई जाती है. वहीं इसे मनाने के तरीके भी अलग-अलग होते है. वहीं इन सभी में एक बात सभी में सामान्य है कि इस दिन गाय और उसके बछड़े की पूजा की जाती है और घर में मोठ, बाजरा, चौला, मूंग आदि को भिगोया जाता है और इस अंकुरित अनाज से पूजा होती है और इसी के साथ गाय और बछड़े की पूजा के बाद कहानी सुनी जाती है. आज हम आपको बताने जा आरहे हैं वह कहानी जो आज के दिन गाय और बछड़े की पूजा के बाद सुनी जाती है.

बछ बारस की कहानी - कई साल पुरानी बात है. पहले एक साहूकार था. इसके सात बेटे और कई पोते थे. साहूकार ने गांव में एक जोहड़ बनया लेकिन, उसमें कई साल तक पानी नहीं आया. वह चिन्ता में रहने लगा. उसने गांव के पंडित जी से इसका उपाय पूछा तो पंडितजी ने बताया कि बड़े बेटे या बड़े पोते की बलि देने के बाद यह जोहड़ भर जाएगा. साहूकार ने एक दिन अपनी बड़ी बहु को पीहर भेज दिया और पीछे से बड़े पोते की बलि दे दी. तभी गरजन के साथ बारिश हुई और जोहड़ में पानी आ गया. इसके बाद बछ बारस आई तो लोग खुशी मनाते हुए जोहड़ पर पहुंचे और वहां पूजा करने लगे. साहूकार भी वहां जाते समय दासी से बोला कि गेहूंला न तो रांद लिए और धातुला न उछैल दिए.

यानि गेहूं को पकाकर ले आना. दासी पूरी बात नहीं समझ पाई उसने गेहूंला नाम गाय के बछड़े को पका लिया. दूसरी तरफ साहूकार गाजै—बाजै के साथ जोहड़ पर पूजन करने के लिए पहुंच गया. साहूकार का बड़ा बेटा और बहू भी पूजा के लिए जोहड़ पर आ गए. पूछा के बाद बच्चे वहां खेलने लगे तो जोहड़ में से उसका वह पोता जिसकी बलि दी थी गोबर में लिपटा हुआ बाहर निकला और बोला मैं भी खेलूंगा. सास—बहू एक दूसरे को देखने लगी. सास ने बहु को पोते की बलि देने वाली सारी बात बताई. बछ बारस माता ने उनका पोता लौटा दिया. खुशी—खुशी वे घर लौटे तो उन्हें बछड़े को काटकर पकाने की बात का पता चला. साहूकार और उसका परिवार दासी पर गुस्सा हुआ. उसने कहा कि एक पाप से उन्हें मुक्ति मिली है और तूने दूसरा पाप चढ़ा दिया. दुखी साहूकार ने पके हुए बछड़े को मिट्टी में गाड़ दिया.

शाम को गाये चर कर आई तो गाय अपने बछड़े को तलाशने लगी. गाय उसी स्थान पर पहुंच गई जहां बछड़े को गाड़ा था. वह उस जगह को खोदने लगी. तभी बछड़ा मिट्टी और गोबर में लिपटा हुआ बाहर निकल आया. तभी साहूकार को बताया कि बछड़ा आ गया है. उसने देखा कि बछड़ा अपनी मां का दूध पीता हुआ उसकी तरफ आ रहा था. साहूकार ने गांव में ढिंढोरा पिटवाया कि बेटे के लिए बछ बारस मनाई जाएगी.

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