गोद भराई की रस्म को कुछ इस तरह से निभाना बेहद जरूरी होता है .
गोद भराई की रस्म को कुछ इस तरह से निभाना बेहद जरूरी होता है .
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मानव जीवन में संयम और नियम को अपनाना बेहद जरूरी होता है. धार्मिकता के अनुसार नियम का पालन करते रहना ,उन्हें अपनाना उन नियमो के लिए समर्पण करना यही मानव की अच्छी पहचान को इंगित करता है . हमारें इस मानव समाज में बहुत से ऐसे नियम है.जिन्हे अपनाने से हमारे कार्य खुशी के साथ संपन्न होते है .

इसी के चलते हिंदू धर्म में गर्भवती स्त्री का जब बच्चे के जन्म के लिए सातवां महीना शुरू होता है. तब उसकी गोद भराई की रस्म की जाती है. आने वाले उस नए जीव और उस स्त्री का रिश्ता इस जग में सबसे पवित्र रिस्ता होता है. इस गोद भराई की रस्म को हमारे समाज की माताएं बहने बड़े ही नियम के साथ खुशी के भाव से पूरी करती है. और भगवान से उस आने वाले नए जीव के जीवन में खुशियाँ आने के लिए प्रार्थना करती है .

प्रत्येक नियम के पीछे कुछ न कुछ राज अवश्य होता है. नियम का बेहद असर होता है. कभी आपने सोचा है, कि गोद भराई की रस्म क्यों होती है. यदि नहीं तो हम आपको बताते हैं। दरअसल, गोद भराई की रस्म होने वाले बच्चे के उत्तम स्वास्थ्य के लिए उसके जीवन में खुशियाँ भरने के लिए की जाती है। उस समय विशेष पूजा से गर्भ के दोषों का निवारण तो किया जाता है। साथ ही, गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य के लिए यह पूरी प्रक्रिया की जाती है।

गोद भराई की रस्म में उसे बड़े-बूढ़ो का आर्शीवाद तो मिलता ही है। साथ ही, इस रस्म में गर्भवती स्त्री की गोद फल और सुखे मेवे से भरी जाती है।फल और सूखे मेवे पौष्टिक होते हैं। गर्भवती महिला को ये फल और मेवे इसलिए दिए जाते हैं .ताकि वो इन्हें खाए, जिससे गर्भ में बच्चे की सेहत अच्छी रहेगी। फल और सूखे मेवों से शरीर में शक्ति आती ही है। 

इस नियम को अपनाने से माँ और बच्चे दोनों का स्वास्थ उत्तम रहता है और बच्चे का जन्म बड़ी ही आसानी के साथ हो जाता है . हमारे पूर्वजों के द्वारा अपनाये इन नियमो की विशेष महत्वता होती है .

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