इस महान कार्य में डॉ भीमराव अम्बेडकर का बौद्धीक ज्ञान आया था काम
इस महान कार्य में डॉ भीमराव अम्बेडकर का बौद्धीक ज्ञान आया था काम
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डॉ भीमराव अम्बेडकर की पहचान न्यायवादी, समाज सुधारक और प्रखर राजनेता के रूप में हैं. उन्हें भारतीय संविधान का पिता भी कहा जाता है. देश में एक प्रसिद्ध राजनेता के रूप में  अस्पृश्यता और जातिगत प्रतिबंधों और अन्य सामाजिक बुराइयों को खत्म करने के लिए उनके प्रयास उल्लेखनीय थे. उन्होंने अपना पूरा जीवन दलितों और पिछड़े वर्ग के लोगों को सशक्त बनाने एवं उनके अधिकारों की रक्षा करने में लगा दिया. स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री भीमराव अम्बेडकर की पहचान ना केवल एक स्वतंत्रता सेनानी की हैं बल्कि भारत के महापुरुषों में भी उनका स्थान अग्रणी हैं.

उनकी कानूनी समझ की वजह से 29 अगस्त, 1947 में अंबेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया. अंबेडकर ने मसौदा तैयार करने के इस काम में अपने सहयोगियों और समकालीन प्रेक्षकों की प्रशंसा अर्जित की.

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस कार्य में अंबेडकर का शुरूआती बौद्ध संघ रीतियों और अन्य बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन बहुत काम आया. संघ रीति में मतपत्र द्वारा मतदान, बहस के नियम, पूर्ववर्तिता और कार्यसूची के प्रयोग, समितियां और काम करने के लिए प्रस्ताव लाना शामिल है. संघ रीतियां स्वयं प्राचीन गणराज्यों जैसे शाक्य और लिच्छवि की शासन प्रणाली के निर्देश (मॉडल) पर आधारित थीं. अंबेडकर ने संविधान को आकार देने के लिए पश्चिमी मॉडल इस्तेमाल किया है, इसमें ब्रिटिश, आयरलैंड, अमेरिका, कनाडा और फ्रांस सहित विभिन्न देशों के संविधान प्रावधान लिए गए पर उसकी भावना भारतीय है.

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