रिक्शाचालक की बेटी ने देश को दिलाया हेप्टाथलॉन में पहला गोल्ड, जानिए कितनी बाधाओं को करना पड़ता है पार
रिक्शाचालक की बेटी ने देश को दिलाया हेप्टाथलॉन में पहला गोल्ड, जानिए कितनी बाधाओं को करना पड़ता है पार
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जकार्ता। इंडोनेशिया के जकार्ता में चल रहे 18वे एशियाई खेलों में भारतीय खिलाड़ी लगातार अपने बेहतर प्रदर्शन से देश की झोली में मैडल ला रहे है। इस कड़ी में भारत की महिला खिलाडी स्वप्ना बर्मन ने  हेप्टाथलॉन में देश को एक और गोल्ड मैडल दिला दिया है। लेकिन क्या आप जानते है कि हेप्टाथलॉन कोई साधारण खेल नहीं है। इस खेल में जितने के लिए कई अलग अलग चुनौतियों से गुजरना पड़ता है। 

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तो चलिए हम आपको बताते है इस खेल से जुडी हर एक जानकारी और स्वप्ना बर्मन के यहाँ तक पहुंचने की कहानी 

कुल 7 स्टेज में अलग-अलग बाधाओं को पार कर बनते है चैंपियन 

हेप्टाथलन के खेल में विजेता बनाने के लिए 7 स्टेज में अलग-अलग बाधाओं को पार कर के सबसे पहले फिनिश लाइन पर पहुंचना होता है। इसमें सबसे पहली स्टेज 100 मीटर रेस की होती है। इस रेस को पूरा करने के तुरंत बाद खिलाड़ी को हाई जम्प में हिस्सा लेना होता है। इसके बाद तीसरा लेवल शॉट पुट, चौथा 200 मीटर रेस, 5वां लॉन्ग जंप और लेवल छठा जेवलिन थ्रो का होता है। यह सभी लेवल बेहद चुनौतीपूर्ण और थका देने वाला होते है। 

स्वप्ना ऐसे बनी विजेता 
स्वप्ना ने हेप्टाथलन की सभी सात स्पर्धाओं में कुल 6026 अंकों के साथ पहला मुकाम हासिल किया है। उन्होंने 100 मीटर रेस में 981 अंकों के साथ चौथा स्थान हासिल किया था। वही हाई जम्प  में 1003 अंक लेकर  उन्होंने पहले स्थान पर कब्जा किया। इस तरह उन्होंने इस खेल में  देश को गोल्ड दिलाया। गौरतलब है कि पिछले साल भी एशियाई ऐथलेटिक्स चैंपियनशिप में भी वह स्वर्ण जीत कर लौटी थीं। 

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बेहद गरीबी में बिता था बचपन 

स्वप्ना बर्मन का बचपन बहुत गरीबी में बिता था। उनके पिताजी एक रिक्शाचालक है और सिर्फ दो वक्त की रोटी खाने लायक ही कमा पाते है। स्वप्ना को अपने  जूतों के लिए भी बेहद संघर्ष करना पड़ता था। दरअसल उनके दोनों पैरों में छह-छह उंगलियां हैं जिस वजह से खेलों में उनकी लैंडिंग को मुश्किल हो जाती है और इसी कारण उनके जूते जल्दी फट जाते थे। 


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