मन में बसे राम को सिंघल ने करवाया मंदिरों में प्रवेश
मन में बसे राम को सिंघल ने करवाया मंदिरों में प्रवेश
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भारत में दलितों पर अत्याचारों की बातें सामने आना कोई नई बात नहीं हैं। अक्सर इस तरह की ख़बरें सामने आती हैं कि दबंगों ने अपने प्रभाव के चलते दलितों को पीटा। दलितों को मीनाक्षीपुरम् के मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया लेकिन ऐसे में आखिर दलित करें तो क्या करें। इन लोगों ने इस्लाम धर्म अपना लिया।  दलितों को संरक्षण मिलने लगा। ऐसे में हिंदूवादी संगठनों की चिंताऐं बढ़ गईं। दरअसल उनके मायने में हिंदूओं की आबादी प्रभावित हो रही थी और धर्म विशेष की ओर पीडि़त दलित वर्ग का झुकाव हो रहा था।

तब एक हिंदूवादी का दिल पसीजा। ऐसे हिंदूवादी जिन्हें आमतौर पर राजनीतिक हंगामों, तोड़फोड़ के लिए ही जाना जाता है। इस हिंदूवादी का नाम कुछ और नहीं अशोक सिंघल था। इस नेता ने अपने नेता होने का असली परिचय देते हुए देखते ही देखते दलितों के लिए 200 मंदिर बनवा दिए। अब इन दलितों को मंदिरों में प्रवेश मिलने लगा। उन्हें उपेक्षित नहीं होना पड़ा।

इस नेता ने हंगामाई आंदोलनों से दूर होकर दलितों के आंसू पोंछे। राजनीतिक में ऐसे नेता बिरले ही मिलते हैं जो किसी एक धर्म या पंथ से जुड़े हों और शोर शराबे से हटकर वास्तविक कार्य करें। कथित तौर पर अन्य धर्मों द्वारा इन दलितों को कभी मिशन के नाम पर तो कभी प्रलोभन के नाम पर सुविधाऐं दी जाने लगीं। इसके विरोध में भी सिंघल ने कार्य किया। अशोक सिंघल 89 वर्ष में विश्व हिंदू परिषद के नेताओं को अलविदा कह गए।

सिंघल ने अपना पूरा जीवन रामजन्म भूमि के लिए खपाया। उनके मन में राम बसे थे और उनकी एक ही इच्छा थी मंदिर वहीं बनाऐंगे, रामलला मन में बसाऐंगे। विवादित श्री रामजन्मभूमि के लिए किए गए आंदोलन में उन्होंने भागीदारी की। वे विहिप के महासचिव बनाए गए। वे वर्ष 1980 में विहिप के महासविच बनाए गए। 1984 में उन्होंने धर्म संसद का आयोजन किया। 1926 में आगरा में जन्मे सिंघल मुस्लिमों को लेकर दिए जाने वाले कट्टर बयानों के लिए जाने जाते थे। वे संगीत में भी शिक्षित थे। 

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