चित्तरंजन दास का जन्म 5 नवंबर, 1870 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ था और वह तत्कालीन ढाका ज़िले में तेलीरबाग़ के एक उच्च मध्यवर्गीय वैद्य परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके पिता भुबन मोहन दास कोलकाता हाई कोर्ट में एक जाने माने वकील थे। ब्रह्म समाज के एक कट्टर समर्थक देशबंधु अपनी तीक्ष्ण बुद्धि और पत्रकारीय दृष्टिकोण के लिए मशहूर थे। चित्तरंजन दास कलकत्ता हाई कोर्ट के विख्यात वक़ील थे, जिन्होंने अलीपुर बम मामले में अरविन्द घोष की पैरवी की थी।
चित्तरंजन दास ने अपनी वकालत छोड़कर गांधीजी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और पूर्णतः राजनीति में आ गए। उन्होंने विलासी जीवन जीना छोड़ दिया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सिद्धान्तों का प्रचार करते हुए पूरे देश का भ्रमण किया। उन्होंने अपनी समस्त सम्पत्ति और विशाल प्रासाद देश हित में समर्पित कर दिया। वे कलकत्ता के नगर प्रमुख निर्वाचित हुए। उनके साथ नेताजी सुभाषचन्द्र बोस कलकत्ता निगम के मुख्य कार्याधिकारी नियुक्त किए गए। इस प्रकार श्री दास ने कलकत्ता निगम को यूरोपीय कब्जे से मुक्त किया और निगम साधनों को कलकत्ता के भारतीय नागरिकों के फायदे के लिए उन्हें नौकरियों में अधिक स्थान देकर हिन्दू-मुस्लिम मतभेदों को दूर करने की कोशिश की।
1922 ई। में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए, उन्होंने खुद भी स्वराज्य पार्टी की स्थापना की। बंगाल और बम्बई की धारासभाओं में तो यह इतनी ताकतवर हो गई कि वहाँ द्वैध शासन प्रणाली के अंतर्गत कैबिनेट तक का बनना मुश्किल हो गया। श्री दास के नेतृत्व में स्वराज्य पार्टी ने देश में इतना ज्यादा प्रभाव बढ़ा लिया कि तत्कालीन भारतमंत्री लार्ड बर्केनहैड के लिए भारत में सांविधानिक सुधारों के लिए चित्तरंजन दास के साथ कोई न कोई समझौता करना आवश्यक हो गया, किन्तु दुर्भाग्यवश अधिक परिश्रम करने और जेल जीवन की कठिनाइयों को न सहन कर पाने के कारण श्री चित्तरंजन दास बीमार पड़ गए और 16 जून, 1925 ई को उनका देहांत हो गया।
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