बाबरी के 30 साल, राम को न मानने से लेकर 'जय सीताराम' तक !
बाबरी के 30 साल, राम को न मानने से लेकर 'जय सीताराम' तक !
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अयोध्या: आज मर्यादा पुरषोत्तम भगवान श्री राम की नगरी अयोध्या एकदम शांत है। सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के बाद सदियों पुराना विवाद खत्म हो चुका है। आज वही दिन है, जब 30 वर्ष पूर्व अपना धीरज खो चुकी भीड़ ने बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को ध्वस्त कर दिया था। लेकिन आज स्थिति एकदम बदल चुकी है। सर्वोच्च न्यायालय फैसले के बाद आज अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कार्य युद्धस्तर पर चल रहा है। इसके अलावा राम की नगरी को पर्यटन के लिहाज से भी तैयार किया जा रहा है। एक दौर था, जब अयोध्या अशांति और अराजकता का घर बन चुकी थी।

जिस दिन विवादित ढांचा गिराया गया था, उस दिन मुस्लिम समुदाय काला दिवस मनाने का ऐलान कर चुका था, तो वहीं हिन्दुओं ने शौर्य दिवस मनाने की घोषणा की थी। हालांकि, विवाद खत्म होने के बाद इन दोनों ही दिवसों की महत्ता भी कम हो चुकी है। यदि, महत्व है तो सिर्फ इस बात का कि आपसी भाईचारा ही देश को प्रगति और विकास के मार्ग पर ले जा सकता है। विवाद सदियों चलते हैं, हजारों लोग मारे जाते हैं मगर इससे किसी का भला नहीं होता। अयोध्या विवाद में भी सबकुछ स्पष्ट था, मंदिर के पुख्ता प्रमाण सबके सामने थे। पुरातत्वविद केके मोहम्मद ने खुलेआम ऐलान किया था कि, विवादित ढांचा मंदिर को तोड़कर बनाया गया था, फिर भी यह मामला सियासी कारणों के चलते लटका रहा। यहाँ तक कि, इतिहास में पहली बार किसी की श्रद्धा और आस्था को कोर्ट में साबित करने की चुनौती दी गई थी। श्री राम के अस्तित्व पर सवाल उठाए गए थे, कोर्ट में उनके होने का प्रमाण मांगा गया था। वो केवल हिन्दू ही थे, जो इतनी उलाहना सहने के बाद भी धैर्य से प्रतीक्षा करते रहे और कोर्ट की तारीख दर तारीख पर न्याय की गुहार लगाते रहे। राम कभी हुए ही नहीं थे और वे काल्पनिक हैं, ये साबित करने के लिए कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पूरा जोर लगा दिया था, केवल मुस्लिम वोटों की खातिर। लोग यह सवाल करने लगे थे कि, क्या कोर्ट किसी अन्य धर्म के व्यक्ति से उसके ईश्वर के अस्तित्व का सबूत मांग सकती है, फिर हिन्दुओं के ही आस्था पर सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं ? जब पुरात्वविदों को मंदिर के अवशेष मिल चुके हैं तो फैसले में देरी क्यों ?  लेकिन कहते हैं न 'सांच को आंच' नहीं। आज सत्ता जाने के बाद खुद राहुल गांधी खुद भी भारत जोड़ो यात्रा में राम के नाम का सहारा लेते हुए नज़र आ रहे है, जो कभी राम को मानने से ही इंकार करते थे।    

जन सैलाब से पट गई थी अयोध्या:-

लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 6 दिसंबर से एक दिन पहले ही पूरी योजना बन चुकी थी और ढांचे को ढहाने का अभ्यास भी किया गया था। इसकी कई तस्वीरें भी सामने आई थीं। रिपोर्ट में कहा गया कि ठीक पहले ही सरयू के जल और बालू से सांकेतिक मंदिर निर्माण का कार्य किया गया। 6 दिसंबर 1992 की सुबह से ही आसमान धूल से भर गया था।  पूरी अयोध्या में जन सैलाब उमड़ आया था। इस सैलाब का हर शख्स जोश में था। नारे लगाए जा रहे थे, 'राम लला हम आएँगे, मंदिर वहीं बनाएंगे', 'जो राम का नहीं, वो किसी काम का नहीं।' 

कल्याण सिंह का इस्तीफा:-

उत्तर प्रदेश के तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह ने केंद्र की नरसिंह राव सरकार से साफ कह दिया था कि यदि ढांचे को कब्जे में लिया गया या फिर राष्ट्रपति शासन लागू किया गया, तो सुरक्षा की गारंटी वह नहीं ले सकेंगे, साथ ही वे मुलायम यादव की तरह कारसेवकों पर गोलियां नहीं चलाएंगे। रामभक्तों का खून बहाने के कारण ही मुलायम को मुल्ला मुलायम का नाम मिला था और वे मुस्लिमों के मसीहा बन गए थे। कल्याण सिंह सरकार ने हाई कोर्ट और सु्प्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने का आश्वासन भी दिया था। हालांकि, गंबुद गिरने के बाद अर्धसैनिक बलों ने कार्रवाई करने का प्रयास किया, लेकिन कारसेवक इस दिन अलग ही सोच लिए चल रहे थे, वे किसी के काबू में आने वाले नहीं थे। आखिर ढांचा तोड़ दिया गया और इसके बाद कल्याण सिंह ने घटना की जिम्मेदारी लेते हुए एक लाइन में ही अपना इस्तीफा लिख दिया। उन्होंने लिखा कि, 'मैं मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे रहा हूं, कृपया स्वीकार करिए।'  उसके बाद दशकों तक राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का मुद्दा सियासी गलियारों में चक्कर काटता रहा और सच्चाई जानते हुए भी राजनेता इस मामले को अटकते रहे। आखिर 500 से अधिक वर्षों के विवाद के बाद 9 नवंबर 2019 को अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया और रामभक्तों की तपस्या सफल हुई।  

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