25 साल का वो क्रांतिकारी, जिसकी 63 दिनों की भूख हड़ताल से दहल गई थी ब्रिटिश हुकूमत
25 साल का वो क्रांतिकारी, जिसकी 63 दिनों की भूख हड़ताल से दहल गई थी ब्रिटिश हुकूमत
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13 सितम्बर 1929, वह दिन जब लाहौर सेन्ट्रल जेल में अचानक सन्नाटा पसर गया, क्योंकि एक 25 वर्षीय युवा क्रान्तिकारी ने 63 दिनों के अनशन के बाद अपना दम तोड़ दिया था. वहीं उसके चाहने वालों की संख्या देखकर ब्रिटिश सम्राज्य के पैरों तले जमीन खिसक गई थी. लाहौर शहर ने कभी इतना लंबा जूलूस इससे पहले कभी नहीं देखा था! शहर के साथ ही पूरे देश में मातम छा गया था. प्रत्येक भारतीय अपने युवा क्रांतिकारी के लिए आंसू बहा रहा था. वो भी ऐसा क्रांतिकारी जिसने हमेशा अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था, लेकिन अफ़सोस अब वो इनके बीच नहीं रहा. माँ भारती का वो वीर सिपाही, कोई और नहीं बल्कि जतिन दां के नाम से मशहूर आज़ादी का जुनूनी सिपाही जतीन्द्रनाथ दास थे.

दास की आयु जब महज 9 साल थी, तो माता का स्वर्गवास हो गया, जिसके बाद इनकी देखभाल पिता ने की. 1920 में इन्होंने मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की. आगे की पढ़ाई कर ही रहे थे कि महात्मा गांधी ने ‘असहयोग आंदोलन’ आरम्भ कर दिया. जिसके बाद ये भी इस आंदोलन में कूद गए. इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा, किन्तु, कुछ दिनों बाद जब यह आंदोलन समाप्त हो गया, तो उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया. आगे दोबारा से कॉलेज में अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए चले गए. हालांकि, इनका जोश अभी भी देश के लिए कुछ कर दिखाने के लिए उबाल मार  रहा था. 1925 में काकोरी कांड के लिए अरेस्ट किया गया और इन्हें जेल में डाल दिया गया. 

जहां इन्होंने जेल में क्रांतिकारियों के साथ होने वाले अमानवीय व्यवहारों को देखा, जिससे इनको काफी दुःख हुआ. फिर दास ने इसके खिलाफ अपना अनशन आरंभ कर दिया. अनशन पर रहते हुए इनको 20 दिन गुजर चुके थे, मगर ये युवा क्रांतिकारी ने हिम्मत नहीं हारी. इनके इस साहस को देखते हुए मजबूरन जेल अधीक्षक को माफ़ी मांगनी पड़ी और 21 वें दिन उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया. आगे जब भगत सिंह ने उन्हें बम बनाने के लिए आगरा आने का न्योता दिया, तो वो कोलकाता से आगरा आ गए. 1929 में जब भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली पर बम फेंके, वो बम जतिन्द्रनाथ दास ने ही बनाए थे. 14 जून 1929 को दास को अंग्रेजों ने अरेस्ट कर लिया और लाहौर षडयंत्र मामले के तहत जेल में डाल दिया गया. 

जब इन्हें जेल में डाला गया तो इन्होंने फिर कैदियों के साथ होने वाले नारकीय वर्ताव को देखा और काफी दुखी हुए. एक ओर जहां ब्रिटिश कैदियों को अच्छी सहूलियतें मिलती थी, वहीं क्रांतिकारी कैदियों के साथ अमानवीय वर्ताव किया जा रहा था. उनके कपडे कई- कई दिनों तक बदले नहीं जाते थे, उनके बैरकों में गन्दगी आम बात थी. बहरहाल, इसके लिए ये चुप चाप नहीं रहे और इन्होंने वापस अनशन आरंभ कर दिया. दास का ये अनशन 13 जुलाई 1929 को आरंभ हुआ था. इस दौरान जेल कर्मियों द्वारा इनको खाना खिलाने के लिए काफी कोशिश की गई, लेकिन इस क्रांतिकारी के हौसले को वो तोड़ने में नाकाम रहे.

कहा जाता है कि दास अपने अनशन के दौरान केवल पानी ही पीते थे. ऐसे में जेल अधिकारी इनके बिगड़ते स्वास्थ्य को देखते हुए एक योजना तैयार की. उन्होंने इनके पानी में कुछ गोलियां डाल दी थी, जिससे इनके शरीर में कुछ गिजा बरकरार रहे. लेकिन, जब दास को इस बात का पता चला तो इन्होंने पानी पीना भी बंद कर दिया. ब्रिटिशों के इस हरकत के बाद दास की हालत नाजुक हो गई और अनशन के 63 वें दिन 13 सितम्बर 1929 को जतींद्रनाथ दास हमेशा के लिए दुनिया को छोड़ गए. 

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