Video: क्या वाकई हम खुश है?
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"दौड़ती भागती सड़कों के साथ 
दौड़ते से कुछ हम है 
खामोश लहरों में बस बहते चले जा रहे है 
ग़मों को किनारे कर ख़ुशी की आस में 
एक सफर पर न जाने कहाँ जा रहे है 
लेकिन इन सब के बीच कभी सोचा है 
क्या वाकई हम खुश है? "

दौड़ती भागती ज़िंदगी का कुछ पलों का ठहराव एक ऐसा ठहराव जब हम कहीं थोड़ा सुकून पाते है, इसी सुकून में ढूंढ लेते है कुछ ग्राम खुशियां जो अब बड़ी मुश्किल से मिलती है. बचपन से जवानी तक, स्कूल से कॉलेज तक, कुछ हजार से लाखों तक, बाइक से कार तक, ब्लैक & व्हाइट फ़ोन से लेकर स्मार्ट फ़ोन तक ज़िंदगी में ढेरों बदलाव हुए, टेक्नोलॉजी ने बुलंदियां चूमी है, लेकिन क्या कभी गौर किया कि जिन खुशियों के लिए हम दिन रात भागते रहते है, दौड़ लगाकर अपने प्रतिभागी को पीछे करने का ख्वाब संजोये रखते है, जिसमें हम सफल भी होते है, लेकिन कभी-कभी वो प्रतियोगी और कोई नहीं आपकी "खुशियां" होती है, जिन्हें हम मीलों पीछे छोड़ते जा रहे है और एक ऐसे सफर पर आगे बढ़ रहे है जिसका शायद कोई मतलब नहीं है. बिन ख़ुशी कोई मंजिल खूबसूरत कैसे हो सकती है? 

खुशियों को पीछे छोड़ने वाली बात हम नहीं बोल रहे है, यह बात बोल रहे है वो आकड़ें जो खुद आपकी हकीकत बयान करते है. संयुक्त राष्ट्र, वर्ड हैप्पीनेस इंडेक्स के लिए 2012 से हर साल कुछ आकड़ें पब्लिक कर 156 देशों का एक सर्वे करती है और यह पता लगाती है कि कौन से देश ज्यादा खुश और कौन से देश दुखी. शर्म की एक बात यह भी है कि यह आकड़ें काफी डराने वाले है और आने वाले सालों में हो सकता है यह आकड़ें आपको डराकर आपकी जान भी ले ले. 2016 की रिपोर्ट के अनुसार भारत 156 देशों की सूचि में 116 वें नंबर पर था वहीं 2017 में हम 122 वें पायदान पर पहुंच गए है, 2018 के आकड़ों शायद आपको झंकझोर देने के लिए काफी है बशर्ते आपके भीतर खुद के लिए और दूसरों के लिए संवेदनाएं बची हो, बशर्ते आप सहानुभूति के साथ समानुभूति की भावना भी दिल में रखते हो, 156 देशों में एक शर्मनाक स्थिति में पहुंच चूका भारत अब पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी बदतर हालत में खुद को 133 वें स्थान पर धकेलने में सफल हुआ है, जिसके हम और हमारी सरकारें है. 

News Track Live के अध्ययन के अनुसार यह सर्वे मुख्य तौर पर कुछ बिंदुओं के आधार पर होता है, जिसमें देश की प्रतिव्यक्ति जीडीपी, भ्रष्टाचार, सामाजिक आजादी, स्वास्थ्य, और सामाजिक सहयोग शामिल है. इन सभी बिंदुओं पर एक ओर जहाँ सरकारों की गलतियां है वहीं हम भी जिम्मेदार है. ज़िंदगी के लिए हम लाखों वादें कर लेते है, करोड़ों मोटिवेशनल विचारों को फॉलो करने की कसम खाते है, अफ़सोस हम उस दिशा में कोई कठोर कदम नहीं उठाते है. इसका नकारात्मक प्रभाव ज़िंदगी में यह भी हो रहा है कि आए दिन कई खबरे ऐसी पढ़ने में आ रही है जब कोई 20-25 युवा हार्ट अटैक से पल भर में अपनी ज़िंदगी दांव पर लगा लेता है और अलविदा कह देता है अनमोल ज़िंदगी को. आज कल लोगों से घरों से खुशिया  नदारद है, खुशियां अब हमसे शायद इतनी खफा है कि वो पास आने से भी डरती है या हो सकता है हम खुशियों को अपनाने से डरते है. जो भी हो नुकसान सिर्फ हमारा है हमारे समाज का है. समाज में हम सब एक दूसरे पर निर्भर रहने वाले लोग है, हम खुश होते है तो हमारे साथ दूसरे कई लोग खुश होते है, हमारे दुःखी होने पर हमारे साथ कई लोग दुःखी होते है. क्यों न हम आज से कोशिश करे कि खुद भी खुश रहे ओर दूसरों को भी खुश रखें. इसी के साथ आप सभी को न्यूज़ ट्रैक लाइव का खुशियों भरा सलाम. 

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