सुरक्षा परिषद पर मतभेद का मतलब भारत के प्रति समर्थन में कमी नहीं : अमेरिका
सुरक्षा परिषद पर मतभेद का मतलब भारत के प्रति समर्थन में कमी नहीं : अमेरिका
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वाशिंगटन: अमेरिका ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधार की प्रक्रिया के मुद्दे पर भारत के साथ उसका मतभेद है, लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि वह सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य के रूप में भारत को शामिल करने के प्रति वचनबद्ध है। दक्षिण और मध्य एशिया मामलों की अमेरिकी विदेश उपमंत्री निशा देसाई बिस्वाल ने बताया, अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत का अनुमोदन करने वाले बयान एक बार नहीं बल्कि अनेक अवसरों पर दिए हैं और कोई भी भारत को शामिल करने पर समर्थन करने की वचनबद्धता से हट नहीं रहा है।

निशा ने यह बात इन सवालो के जवाब में कही कि संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजनयिकों के हाल के बयानों पर भारत में अनेक लोगों का यह विचार बन रहा है कि ओबामा प्रशासन किसी विस्तारित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य के रूप में भारत के अनुमोदन पर पुनर्विचार कर रहा है। उन्होंने कहा, सुधार के बाद सुरक्षा परिषद कैसी होगी, उसकी प्रकृति बहुत जटिल है। मैं इसपर कोई टिप्पणी नहीं करने जा रही हूं। यह ऐसा क्षेत्र नहीं है जिससे मैं जुड़ी हूं।

जटिल होगी सुधार प्रक्रिया-

निशा ने कहा, ‘लेकिन मैं यह जानती हूं कि यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां बहुत ही गहन विमर्श और चर्चा हो रही है और वे बेहद जटिल है। सो, जिस प्रक्रिया से हम यह पाएंगे वह जटिल होने जा रही है।’ निशा ने कहा, ‘उस प्रक्रिया के कुछ पहलू होंगे जहां हम और भारत सहमत होंगे कि रुख और प्रक्रिया क्या होगी और सुधार प्रक्रिया किस तरह की दिखनी चाहिए। ढेर सारे क्षेत्र होंगे जहां हम सहमत नहीं होंगे। और किसी प्रक्रिया पर हर असहमति को भारत को शामिल किए जाने पर समर्थन की कमी के बतौर नहीं लिया जाना चाहिए।

हर बात में भारत से सहमति जरूरी नहीं-

अमेरिकी विदेश उपमंत्री ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सुधार जटिल प्रक्रिया होगा। ‘सुरक्षा परिषद में भारत को शामिल किए जाने का निष्कर्ष ऐसा है जिसका हमने उच्चतम स्तर पर पहले ही अनुमोदन कर दिया है।’ उन्होंने सुधार प्रक्रिया के उन पहलुओं का ब्योरा देने से परहेज किया जिसपर भारत और अमेरिका के बीच असहमति हैं। 

निशा ने कहा, मैं यह भी नहीं जानती कि क्या इन मुद्दों पर चर्चा करना उचित होगा। ये विमर्श की प्रक्रियाएं हैं जिन्हें इस आधार पर हल किया जाना है कि कैसे सुधार पर विभिन्न प्रस्तावों को एकरूप किया जाता है। उन्होंने भारत के प्रति अमेरिकी समर्थन की बात दोहराते हुए कहा, ‘मैं नहीं समझती कि सार्वजनिक रूप से उनपर चर्चा होने जा रही है। इन बातों को उन लोगों पर छोड़ दिया जाए जो इन्हें निबटाएंगे।

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