इस खिलाड़ी ने वकालत छोड़ थाम ली पिस्टल, फिर पदक पर लगाया निशाना
इस खिलाड़ी ने वकालत छोड़ थाम ली पिस्टल, फिर पदक पर लगाया निशाना
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वैसे तो लोग जिस उम्र में लोग अपने करियर और उम्र की जिस दहलीज पर अच्छे से अच्छा व्यक्ति भी हौसला छोड़ने लगता है, उसी उम्र में दोनों ने निशानेबाजी में ऐसे जौहर दिखाए कि दुनिया कायल हो गई. इसी दादी चंद्रो की कहानी अखबार में पढ़कर पानीपत जिले की बेटी अनु वत्स ने वकालत छोड़ हाथ में पिस्टल उठा ली और नेशनल शूटिंग चैंपियनशिप में दिग्गजों के बीच पदक जीत धमक कायम की.

वकालत कर जुटाए पैसे से खरीदा पिस्टल: आपकी जानकारी के लिए हम आपको बता दें पानीपत के सेक्टर-24 की रहने वाली 26 वर्षीय अनु वत्स के लिए निशानेबाजी की राह आसान नहीं रही. छह साल वकालत कर जोड़े गए पैसे अनु ने लक्ष्य को हासिल करने के लिए पिस्टल और प्रशिक्षण पर खर्च कर दिए. डेढ़ लाख रुपये की पिस्टल खरीदी. द्रोणाचार्य एकेडमी में निशानेबाजी कोच जसबीर सिंह की शरण में पहुंच गईं. प्रतिदिन 10 से 12 घंटे तक अभ्यास किया. शुरू में अनु के इस फैसले से पिता रामेशवर और मां कमलेश खुश नहीं थे. उनकी चाहत तो बस यही थी कि बेटी वकालत में बड़ा नाम कमाए. मगर जब बेटी ने पहले नार्थ जोन प्रतियोगिता में रजत और बाद में 21 से 24 दिसंबर तक भोपाल में हुई 63वीं नेशनल शूटिंग चैंपियनशिप में दिग्गज निशानेबाजों के बीच कांस्य पदक जीता, तो उनकी भी राय बदल गई.

अब व‌र्ल्ड कप शूटिंग में पदक का लक्ष्य: वहीं जब इस बारें में अनु से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि अब उसका लक्ष्य फरवरी 2020 में भारत में होने वाले शूटिंग व‌र्ल्ड कप में पदक जीतना है. इसके लिए 25 जनवरी से 8 फरवरी तक केरल के त्रिवेंद्रम में ट्रायल है. इसके लिए उसने त्रिवेंद्रम में अभ्यास भी शुरू कर दिया है. 6 से 8 फरवरी को वहीं प्रतियोगिता भी होनी है.

रोज 500 गोली निशाने पर, अंतरराष्ट्रीय शूटरों को दी मात: अनु वत्स ने बताया कि हर रोज 500 गोलियां टारगेट पर दागती हैं. आठ माह में करीब पांच लाख रुपये खर्च हो चुके हैं. एक निजी अस्पताल में नर्स की नौकरी कर रही बड़ी बहन रजनी भी उसकी मदद कर रही हैं. वह पहली बार नेशनल शूटिंग प्रतियोगिता में शामिल हुई. इसमें ओलंपिक का कोटा प्राप्त कर चुकी मनु भाकर, यशस्वी देशवाल सहित 30 राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय शूटर सामने थीं. उसने हौसला रखा और 600 में से 568 का स्कोर कर कांस्य पदक जीत लिया. अब माता-पिता खुश हैं.

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