अंग अंग तेरे रंग में भिगो गई हूँ मैं
अंग अंग तेरे रंग में भिगो गई हूँ मैं
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सुल्झ रही हूँ मैं ...
पल पल रमती ही जा रही हूँ मैं तुझमें
थे मीलों के फ़ासले सदियों की दूरियाँ 
दिखती थीं कभी दूर अनजान असीम 
राहें तेरी अब वह सब पा ही गई हूँ मैं 

अपनी खुदाई को तुझमें रमा गई हूँ मैं 
समुंदर सा वज़ूद था कभी मेरा अपना
तपश-ए-इश्क में धुआँ हो ही गई हूँ मैं
बन घटा तुझ तक पहुँच ही गई हूँ मैं

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