महाकालेश्वर मंदिर की प्राचीन परम्पराए
महाकालेश्वर मंदिर की प्राचीन परम्पराए
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महाकालेश्वर मंदिर की प्राचीन परम्परो का बड़ा ही मत्वा है इन परम्परो के कारण ही आज जो ज्योतिर्लिंग की ख्याति भारत वर्ष में ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में है मंदिर की परंपराओ भगवन महाकालेश्वर मंदिर में प्रातः काल सूर्य उदय के पूर्व प्रथम पूजन भस्माआरती के रूप में की जाती है |

यह आरती ज्योतिर्लिंगों में एक मात्र ऐसा स्थान है जहा पर यह आरती की जाती है भगवन महाकाल ने यहाँ भस्म धारण करकर नाशवान होने का बोदक बताया है यह आरती मनुष्य का जीवन है लय और विलय की क्रिया है निराकार और साकार का प्रतिबिंब है क्योकि भस्मा आरती ने भगवन शिव को निराकार से साकार रूप प्रदान किया जाता है एवं पाच मंत्रो से भगवान महाकाल पर गाय से बने उबले की भस्म जो की अक्षं धुनें में तैयार की जाती है उससे भगवान महाकाल पर भस्म चडाई जाती है एवं मंगल आरती की जाती है |

महाकालेश्वर मंदिर में प्रति दिन भस्मा आरती से शयन आरती तक पाच आरती एवं एक पूजन की जाती है | महाकालेश्वर मंदिर में बाबा महाकाल जो की स्वयं जगत के राजाधिराज है इसलिए महाकालेश्वर मंदिर में शावन मॉस में प्रतिदिन हजारो यात्रियों का मेला लगता है श्रवण एवं भरा सवारिय निकलती है इसमें भगवान शिव की रजत प्रतिमाओ की बहुत सुन्दर पालकी में सवार होकर बाबा नगर भमण के लिए निकलते है एवं भक्तो को आशीर्वाद प्रदान करते है इसी प्रकार कार्तिक के महीने में दशहरे पर भगवान शिव की सावरिया निकाली जाती है वेकुंद चतुर्दशी के दिन रात्रि कालीन हरी हर का मिलन होता है जिसमे भगवान शिव वैष्णव मंदिर गोपाल मंदिर जाते है वह शिव को तुलसी की माला एवं विष्णु को बिल पत्र की माला पहनकर हरी हर का मिलन होता है.

फागुन के महीने में शिव रात्रि के समय शिव नवरात्री उत्सव होता है शिव की नवरात्री मानाने का उत्सव ज्योतिर्लिंग बाबा महाकाल के दरबार में ही किया जाता है इसमें नो दिवसीय शिव नवरात्री मनाई जाती है प्रतिदिन प्रातःकाल फागुन कृष्ण पक्ष की पंचमी से प्रारंभ होता है | इस उत्सव में कोटि तीर्थ में स्थित कोटेश्वर महादेव का पूजन अभिषेक भ्रह्मन वरन आदि कर महाकालेश्वर जी का पूजन प्रारंभ किया जाता है. शिव नवरात्री में नित्य भगवान शिव के शिर्गर के दर्शन सायंकाल के भक्तो को देखने को मिलते है महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का महा पूजन भस्मा आरती से प्रारंभ होकर 44 घंटे सत भक्त लोगो को दर्शन का लाभ मिलता है एवं महाशिवरात्रि के दिन सिंधिया एवं होलकर घराने द्वारा मंदिर एवं तहसील की पूजन दिन में की जाती है एवं रात्रिकालीन महा पूजा महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति द्वारा मंदिर के माध्यम से पुजारियों के द्वारा पूर्ण की जाती है.

यह पूजन रातभर गर्भगृह में चलती है इस पुजन में भगवान शिव के महा मंत्रो से एवं रूद्र मंत्रो से भगवान शिव का पंचामृत महा अभिषेक किया जाता है अभिषेक के पच्यात भगवान शिव पर सप्त धातु को मुखोटा एवं सप्त धान्य भगवान पर चडाया जाता है सवा लाख बिल पत्र सहस्त्र नामावली पर भगवान पर अर्पण किये जाते है एवं प्रातः काल 4 बजे के लगभग भगवान महाकाल पर कुन्तलो फूलो से भगवान का सहरा बाँधा जाता है एवं महा आरती की जाती है व् महाआरती के पश्चात दोपहर में 12 बजे साल भर में एक मात्र ऐसा दिन होता है जिसमे महाकाल बाबा की ४ बजे होने वाली आरती दोपहर में 12 बजे की जाती है | मंदिर की परंपरा को आज भी मंदिर के पिउजारी परिवारों ने जीवित रखा है साल भर में महाकालेश्वर मंदिर में प्रत्येक मॉस पर्व एवं उत्सव मानते है

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