4000 गाने, 40 बार फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकन तथा लगभग 4 दशकों तक फिल्मों पर संगीत का जादू बिखेरने वाले जादूगर आनंद बख्शी ने जो कलम से लिखा वो संगीत के जगत में सुनहरा इतिहास बनकर दर्ज हो गया। शमशाद बेगम, अलका याग्निक, मन्ना डे एवं कुमार सानू जैसे गायक आते-जाते रहे किन्तु शब्दों को संगीत में पिरोने वाले बख्शी हमेशा मैदान में खड़े रहे। आनंद बख्शी का जन्म 21 जुलाई वर्ष 1930 में मौजूदा पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर में हुआ था। सेना में नौकरी करने वाले आनंद कैसे भारत के लोकप्रिय गीतकार बने, चलिए उनके जन्मदिन पर आपको बताते हैं उनसे संबंधित कुछ विशेष बातें...
आनंद बख्शी के पिता रावलपिंडी में बैंक मैनेजर थे। किशोरावस्था में ही आनंद टेलीफोन ऑपरेटर बनकर सेना में सम्मिलित हो गए थे। किन्तु बम्बई (मुंबई) और फिल्मों की दुनिया में आने के सपने ने उन्हें इससे बांधे रखा। बंटवारा हुआ तो आनंद का परिवार शरणार्थी बनकर हिन्दुस्तान आ गया। जब मायानगरी में कुछ ना हुआ तो आनंद बख्शी ने फिर से सेना ज्वाइन कर ली तथा कुछ वक़्त तक वहीं काम करते रहे। 3 साल सेना में नौकरी करने के बाद उन्होंने निर्धारित किया कि उनकी जिंदगी का मकसद बंदूक चलाना नहीं गीत लिखना है। उन्हें पहली बार गीत लिखने का अवसर 1957 में मिला किन्तु कामयाबी उनसे दामन चुराती रही। 1963 में एक्टर एवं डायरेक्टर राज कपूर ने उन्हें अपनी फिल्म 'मेहंदी लगे मेरे हाथ' के लिए गीत लिखने का मौका दिया। तत्पश्चात, कामयाबी ने कभी आनंद बख्शी का साथ नहीं छोड़ा।
आनंद बख्शी के करियर का आरभिंक माइलस्टोन बनी ‘आराधना’, ‘अमर प्रेम’ एवं ‘कटी पतंग’ जैसी फिल्में, जिनके कांधे चढ़कर राजेश खन्ना भारतीय फिल्मों के पहले सुपरस्टार बने। आनंद बक्शी ने फिल्मकारों की कई पीढ़ियों के साथ काम किया। उनकी सबसे बड़ी खूबी ये थी कि वक़्त के साथ उनके गीतों का लहजा बदलता रहा।
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