सोच के मायाझाल में फँसी वैज्ञानिक जिंदगी व उसके आविष्कार
सोच के मायाझाल में फँसी वैज्ञानिक जिंदगी व उसके आविष्कार
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सदियों से वैज्ञानिकों के आविष्कार कौतुहल भरे रहे है जो विज्ञान के यथार्थ व उसके जीवन में महत्व को समझाते है और समाज को विकास की एक पीढ़ी आगे ले जाते है | इससे भी ज्यादा आश्चर्य वैज्ञानिकों की जिंदगी व उनके संघर्ष के बारे में जानकार होता है जो शांत दिमाग में आश्चर्य की झनझनाहट पैदा कर देता है | वैज्ञानिकों की ऐसी जिंदगी जो वे अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए व्यतित करते है वो वास्तव में सामाजिक, प्रशासनिक व सरकारी सोच का प्रतिबिम्ब होता है जो उन्हे ऐसा जिने को मजबूर कर देता है अन्यथा कौनसा व्यक्ति उच्च स्तर की विश्लेषण एवं तार्किक क्षमता रखता हुआ विवशता एवं संघर्ष पूर्ण जीवन व्यतित करना पसंद करेगा |

वैज्ञानिकों का मुख्य कार्य नए आविष्कारों के रूप में सामने आता है, जो तकनिको एवं सिद्धांतो के आधार पर टीका होता है और सच के यथार्थ रुपी अलौकिक प्रकाश से सामाजिक बुराइयों एवं कुरुतियो को चीर डालता है | सामान्य रूप से कोई भी नया आविष्कार करने से पहले उसके भूतकाल को जानना जरूरी होता है कि उसके पहले क्या-क्या हो चुका है | इसके पश्यात वर्तमान में चल रहे उत्पाद व उसकी तकनीक व तरिके को समझना पड़ता है | इससे आगे स्वार्थ, लालच, लोभ व अपनेपन के मायाजाल को अलग करते हुये असली कमियों को ढूंढना पड़ता है, फिर वर्तमान समय में आगे सोचकर तकनीकों एवं सिद्धांतो के ओजारो से कमियों को दूर करना पड़ता है, तब जाकर परिणाम के रूप में नया आविष्कार सामने आता है |

सामान्य ईंसान भूतकाल के हिस्से को आसानी से समझ जाता है परन्तु वर्तमान में चल रहे उत्पादों को परिभ्रमण दूरी की एक निश्चित सीमा में बन्धे होने के साथ-साथ बाज़ार की सीमा व उपलब्धता के कारण पुरि तरह नहीं समझ पाता तो वैज्ञानिकों द्वारा भविष्य कीं बात व उसके उत्पाद को समझना बहुत मुश्किल होता है और उसकी अधिकांश बातें सिर के उप्पर से गुजरने लगती है इसलिए उल्टा वैज्ञानिकों को आधा पागल कहकर लोग वर्तमान में जीने लग जाते है | जीवन के स़फर में समय व्यतीत होता रहता है और व भविष्य से वर्तमान और फिर भूतकाल में बदल जाता है | जब भूतकाल बनता है तब जाकर लोगो को समझ में आता है कि फला वैज्ञानिक ने क्या कहा और क्या किया तब उसके प्रति संवेदना प्रकट करता है, उसे आदर्श व रोल मॉडल बनता है और अपनी संतानों को शिक्षा के रूप में उसके जीवन के बार में पढ़ाता है | इस पुरे चक्र में सामाजिक व प्रशासनिक सोच के मायाजाल में जितना समय व्यतीत होता है उतने में कई संघर्षो का सामना करते हुये वैज्ञानिक कीं जिंदगी ही पूरी हो जाती है |

यदि व्यापक विश्लेषण किया जाये तो यह व्यतित समय एक वैज्ञानिक से ज्यादा लोगो के लिए घातक साबित होता है जो समाज के विकास के पहिये को अवरुद्ध और धीमा कर देता है | यदि आविष्कार जीवन रक्षक दवाइयों एवं टीकों से जुड़ा हो तो कई ईंशानी मौतों का काल साबित होता है | प्रत्येक आविष्कार के पिछे एक कहानी या घटना छुपी होती है परन्तु सभी उप्पर बताये सामाजिक मायाझाल के ट्रैक में फीट हो जाती है या इसे स्पष्ट भाषा में अभिव्यक्त करे तो सभी आविष्कारों कीं घटनाओं से इस सामाजिक ट्रैक कीं पुष्टि होती है व प्रत्येक नई घटना इसे बलवती बनाती जाती है | सोच के इस स्तर पर आने के बाद अधिकांश लोग फिर मानसिकता के भँवर में फँस जाते है जो बाजारवाद एवं धन मोह के पाश में जकड़े रहते है व मूल सिद्धांत और तकनीक को भुलकर व्यतिगत जीवन में उलझ रहते है | जो ईशान नहीं उलझता व शिक्षा के उच्च स्तर के मार्ग से गुजरता हुआ समाज को नई उच्चाइयों तक ले जाता है | यह जीवन की रूपरेखा 19वीं सदी के सबसे ज्यादा व 20वीं सदी के कम वैज्ञानिकों के लिए उपयुक्त लगती है परन्तु अभी हम 20वीं सदी मे जी रहे है इसलिए समय के साथ तरिके बदल गये परन्तु सामाजिक सोच नहीं बदली | आप नए तरीकों को जानेगे तो समझ जायेगे की भारत को डाँ रमन के रूप में प्रथम नोबेल पुरुस्कार मिलने के बाद दूसरे के लिए अकाल क्यू पड़ा व आगे भी इसकी संभावना शुन्य क्यू है ? इसके अलावा जो वैज्ञानिक देश छोड़कर विदेश चला जाता है वो कैसे सफल हो जाता है व पुरी मानवजाति को गतिमान कर देता है| 

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