नई दिल्ली: मानसून सत्र शुरू होने के साथ ही अविश्वास प्रस्ताव को लेकर टिका-टिप्पणी शुरू हो गई थी और पहले ही दिन पहला अविश्वास प्रस्ताव मंजूर होने के साथ ही अविश्वास की इस आग में घी भी पड़ गया, जिससे इसने और लपटें पकड़ ली हैं. हालाँकि देखा जाए तो इस प्रस्ताव से मोदी सरकार का कुछ बिगड़ता नहीं दिख रहा है, क्योंकि उनके पास बहुमत से ज्यादा सदस्य हैं. अगर इतिहास को भी उठाकर देखें तो आज तक 26 बार अविश्वास प्रस्ताव संसद में मंजूर किए गए हैं, लेकिन सत्ताधारी सरकार की केवल 2 ही बार हार हुई है.
सबसे पहला अविश्वास प्रस्ताव 1963 में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ लाया गया था. जिन जेबी कृपलानी ने यह प्रस्ताव रखा था, वो पहले कांग्रेस पार्टी में ही अध्यक्ष पद पर थे, लेकिन दूसरी बार उन्हें अध्यक्ष ना बनाए जाने के कारन वे नाराज़ हो गए और खुद की 'किसान मजदूर प्रजा पार्टी' बना ली. लेकिन इस अविश्वास प्रस्ताव पर कृपलानी को मात्र 62 वोट मिले और नेहरू के समर्थन में 347 वोट. इस तरह पहला ही अविश्वास प्रस्ताव बुरी तरह फ़ैल हो गया. भारत के इतिहास में सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के खिलाफ लाए गए. इंदिरा सरकार के खिलाफ 15 बार अविश्वास प्रस्ताव लाए गए लेकिन एक बार भी विपक्ष को इसमें सफलता नहीं मिल सकी. सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का भी एक रिकॉर्ड है, ये पेश किए हैं कम्युनिस्ट पार्टी के ज्योति बसु ने, उन्होंने 4 बार अविश्वास प्रस्ताव दाखिल किए, सभी इंदिरा सरकार के खिलाफ.
अविश्वास प्रस्ताव को पहली सफलता 1978 में मिली, इस बार सामने जनता दल के मोरारजी देसाई थे, उनके खिलाफ 2 बार अविश्वास प्रस्ताव दाखिल किए गए, पहले में तो वे बच गए, लेकिन दूसरी बार में उन्हें आपसी मतभेदों के कारन अपनी हार का अंदाज़ा हो गया था, इसलिए उन्होंने खुद ही इस्तीफा दे दिया. 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को जयललिता की पार्टी के समर्थन वापस लेने से अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था. तब वाजपेयी सरकार 1 वोट के अंदर से हार गई थी. उन्होंने मतविभाजन से पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया था. अब देखना ये है कि 20 जुलाई का दिन इतिहास के पन्नों में क्या फेरबदल करता है.
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