अक्टूबर को प्रतिवर्ष 'हिन्दू हेरिटेज मंथ' के रूप में मनाएगा अमेरिका..! पारित किया विधेयक, और भारत में..

अक्टूबर को प्रतिवर्ष 'हिन्दू हेरिटेज मंथ' के रूप में मनाएगा अमेरिका..! पारित किया विधेयक, और भारत में..
Share:

वाशिंगटन: अमेरिका के ओहायो राज्य में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए अक्टूबर महीने को हिंदू हेरिटेज मंथ के रूप में मनाने का विधेयक पारित किया गया है। यह विधेयक, जो ओहायो स्टेट हाउस और सीनेट दोनों में सर्वसम्मति से पारित हुआ, न केवल हिंदू धर्म के योगदान और उसकी समृद्ध परंपराओं को सम्मान देता है, बल्कि अमेरिका जैसे विकसित देश में धार्मिक विविधता को बढ़ावा देने का भी प्रतीक है। ओहायो के पहले भारतीय-अमेरिकी और हिंदू स्टेट सीनेटर नीरज अंतानी ने इस विधेयक को पेश किया और इसे पारित करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने इसे ओहायो और देश भर के हिंदुओं के लिए एक बड़ी जीत करार दिया। 

नीरज अंतानी ने कहा कि अब हर साल अक्टूबर में ओहायो में हिंदू विरासत का जश्न आधिकारिक तौर पर मनाया जाएगा। उन्होंने इसे हिंदू समुदाय और उनके अधिवक्ताओं के अथक प्रयासों का नतीजा बताया। इस कदम का स्वागत करते हुए हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन (HAF) के प्रबंध निदेशक समीर कालरा ने कहा कि यह विधेयक हिंदू अमेरिकियों के योगदान, संस्कृति और परंपराओं को बेहतर ढंग से समझने और सराहने में मदद करेगा।

लेकिन यही सवाल भारत में हिंदुओं की स्थिति पर उठता है। अमेरिका जैसे देश, जहां हिंदू समुदाय अल्पसंख्यक है, वहां उनके धर्म और परंपराओं का सम्मान करते हुए एक पूरा महीना समर्पित किया जाता है। वहीं, भारत जैसे हिंदू बहुल देश में हिंदू धर्म को सम्मान देने की कोशिशें अक्सर विवादों में घिर जाती हैं। भारत में ऐसा ट्रेंड बन गया है कि अपनी हिंदू पहचान को गर्व से जताना एक संवेदनशील मुद्दा बन गया है। ऐसा माहौल तैयार कर दिया गया है, जिसमें एक आम व्यक्ति भी अपनी धार्मिक पहचान जाहिर करने से डरता है कि कहीं उसे सांप्रदायिक या किसी राजनीतिक दल से जोड़ा न जाए। इसी वजह से, हिंदू धर्म को अपमानित करना जैसे एक चलन बन गया है। 

हाल के वर्षों में, राहुल गांधी का यह बयान कि "मैं किसी हिंदुत्व को नहीं मानता," और उनके सहयोगी उदयनिधि स्टालिन का सनातन धर्म की तुलना एड्स जैसी बीमारी से करना, इस प्रवृत्ति को और स्पष्ट करता है। ऑनलाइन टीवी डिबेट्स में खुलेआम हिंदू धर्म और प्रतीकों का मजाक उड़ाना, जैसे शिवलिंग को प्राइवेट पार्ट कहना, न केवल धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाता है, बल्कि यह हिंदू समाज के प्रति एक उदासीन रवैया भी दर्शाता है। 

लेकिन विडंबना यह है कि इन मामलों में कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती। जब हिंदू समाज गुस्से में आकर जवाब देता है, तो "सर तन से जुदा" के नारे लगते हैं और हिंसा होती है। ऐसे मामलों में हिंदू बहुसंख्यक होने के बावजूद बहुसंख्यकों की आवाज दबा दी जाती है। यहां सवाल यह उठता है कि क्या भारत में हिंदू धर्म को सम्मान देने का साहसिक कदम कभी उठाया जाएगा? या फिर "सेकुलरिज्म खतरे में है" के नाम पर हर बार हिंदू पहचान को दबाया जाता रहेगा?  

 

Share:

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
- Sponsored Advert -