भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर अमेरिका में बसे भारतवंशियों को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने जो कुछ कहा ऐसा लगा जैसे वह अपनों के बीच अपनी बात कर रहे हैं। यानि इस बार का उनका कार्यक्रम मन की बात पर केंद्रित न होकर अपनी बात पर केंद्रित हो गया। इस दौरान उन्होंने भारतीयों द्वारा अमेरिका और दूसरे देशों में बसकर उम्दा कार्य करने को सराहा तो इसे भारत से प्रतिभा पलायन न मानते हुए भारत के लिए ही भारत के मस्तिष्क का खपना बताया।
उन्होंने कहा कि अमेरिकी अमेरिका में रहकर भारत के लिए कार्य करेंगे यह ब्रेन गेन है। पहले ब्रेन ड्रेन की बातें हुआ करती थीं लेकिन अब ब्रेन गेन की बात की जा रही है। यह बेहद अच्छी बात है। यहां ऐसा लगा जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डिजीटल इंडिया के अपने महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पर चर्चा कर रहे हों। अप्रत्यक्ष तौर पर उन्होंने अमेरिकियों को भारत में कारोबार करने का अवसर दिए जाने की बात कही। हालांकि अपने उद्बोधन में वे भावुुक हो उठे और अपनी मां से जुड़ी यादों को लोगों से साझा किया।
उन्होंने कहा कि मां ने किस तरह से संघर्ष कर उन्हें बड़ा किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस दौरान रो भी पड़े। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर जिस तरह से भारतीय राजनीतिक व्यवस्था पर टिप्पणी की उसकी जमकर आलोचना की गई। विपक्षियों और कुछ आमजन का यह मत था कि प्रधानमंत्री के तौर पर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर संबोधित करने वाले नेता को क्या दूसरे देश में भारतीय राजनीति की समीक्षा करना चाहिए। अमूमन मोदी ने भारत की तस्वीर को मजबूती के साथ दुनिया के सामने रखा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधनों का असर रहा है कि दुनिया भारत को एक बड़े बाजार के तौर पर देखने लगी लेकिन मोदी द्वारा भारतीय राजनीति की इस तरह से आलोचना करने को लेकर भी चर्चाऐं रहीं। जिस लेकर यह भी कहा गया कि भाजपा पर राजनीतिक द्वेष हावी न हो जाए। कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देखने वाली भाजपा बदले की राजनीति पर न उतर आए।