सदन में मर्यादित भाषा का इस्तेमाल करे नेता
सदन में मर्यादित भाषा का इस्तेमाल करे नेता
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लखनऊ : समाजवादी पार्टी की सरकार में प्रमुख मंत्री आजम खान और राज्यपाल राम नाईक के बीच विवाद को लेकर इलाहाबाद की लखनऊ बेंच ने दखल दिया। उच्च न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा कि वे अपनी भाषा में सभ्यता का स्तर बढ़ा लें। मतभेद न करें। दरअसल विधानसभा में कैबिनेट मंत्री आजम खान द्वारा राज्यपाल राम नाईक के विरूद्ध आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। यह याचिका अभिभाषक अशोक पांडेय द्वारा दायर की गई।

न्यायालय ने इस याचिका को लेकर सुनवाई करते हुए कहा कि एक नेता अपने ज्ञानपूर्ण और प्रभावशाली भाषण से सभ्यता के स्तर को आगे ले जाने की बात करता है तो इस पर लोग गर्व करते हैं कि उन्होंने एक अच्छा नेता चुना था। लेकिन जब वैचारिक संघर्ष प्रारंभ होता है तो यह भाषा की परेशानी बन जाता है। संवैधानिक संस्थाओं के मध्य राजनीति से प्रेरित संघर्ष को वे जन्म देते हैं।

लोकतंत्र में वैचारिक मतभेद से गतिरोध उत्पन्न होता है। उनका कहना था कि इस तरह के मतभेदों को जल्द ही सुलझाया जा सकता है। संसदीय और असंसदीय भाषा में अंतर दर्शाते हुए न्यायालय ने कहा कि यह एक तरह की संसदीय भाषा होती है। ऐसे में इसे ही बोला जाता है। मगर इससे अलग हटकर सदन में विचारों का आदान - प्रदान, वाक पटुता हास्य चुटकुलों और शिष्टाचार से भी हो सकता है। ऐसे में हम अपनी बात लोगों तक पहुंचा सकते हैं। 

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