यूं तो महाराष्ट्र अष्टविनायक के जागृत तीर्थ स्थल के तौर पर जाना जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि यहां सोने का गणपति है। जी हां, सोने का गणपति यहां विराजमान हैं। यह गणेश जी सांगली के गणेश जी के नाम से जाने जाते हैं। दरअसल भगवान ऐसी कहावत है। कि भगवान को जरी का चोला चढ़ाया जाता है इसलिए यहां भगवान के लिए कहा जाता है सांगली का गणेश है सोने का, जिसे अच्छा लगता है चोला जरी का।
भगवान की मूर्ति अत्यंत मनमोहक है। भगवान समृद्धि देने वाले हैं। उन्हें सांगली के आराध्य देव के तौर पर पहचाना जाता है। भगवान को पंचायतन गणपति के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। मान्यता है कि भगवान श्री गणेश यहां आने वाले भक्तों की झोली भरकर सुख - समृद्धि का वरदान प्रदान करते हैं। मंदिर की स्थापना वर्ष 1844 में की गई।
यहां भगवान श्री गणेश के साथ शिव, चिंतामणेश्वरी, सूर्य देव और श्री लक्ष्मीनारायण जी प्रतिष्ठापित हैं। मंदिर परिसर में भगवान के मंदिर में बहुत ही सुंदर नक्काशी की गई है। मंदिर परिसर में तो रमणीयता है ही मगर भगवान की मूर्ति हरों से जडि़त है। मंदिर परिसर में अत्यंत विराट हाथी प्रतिष्ठापित है। यह मंदिर कृष्णा नदी के तट पर प्रतिष्ठापित है। दरअसल यहां बबलू नामक हाथी की स्मृति में विशाल हाथी का निर्माण किया गया है। यहां आने वालों की सभी मनोकामनाऐं पूर्ण होती हैं। भगवान के दरबार में चतुर्थी, जत्रा, बुधवार को बड़े पैमाने पर श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं।