मध्यप्रदेश के इस शक्तिपीठ के दर्शन मात्र से दूर होते हैं सारे कष्ट
मध्यप्रदेश के इस शक्तिपीठ के दर्शन मात्र से दूर होते हैं सारे कष्ट
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कालमाधव शक्तिपीठ को हिंदू धर्म में प्रसिद्ध 52 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यह शक्तिपीठ मध्य प्रदेश राज्य के अमरकंटक में काल माधव नामक स्थान पर स्थित सोम नदी के पास एक गुफा में है। हिंदू धर्म में पुराणों के अनुसार जहां-जहां देवी सती के शरीर के अंग या आभूषण गिरे वहां-वहां उनके शक्तिपीठ बनाए गए हैं। यह पावन तीर्थ कहलाए, जो पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव के ससुर राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया था। जिसमें राजा दक्ष ने भगवान शिव और माता सती को निमंत्रण नहीं भेजा था, क्योंकि राजा दक्ष भगवान शिव को अपने बराबर का नहीं समझते थे। यह बात जब माता सती को पता लगी तो उन्हें काफी बुरा लगा वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गई। यज्ञ स्थल पर भगवान शिव का काफी अपमान किया गया, जिससे माता सती सहन नहीं कर पाई और वह उसी हवन कुंड में कूद गई भगवान शंकर को यह बात पता चली जिसके बाद वे वहां पर पहुँच गए और माता सती के शरीर को हवन कुंड से निकालकर तांडव करने लगे। जिसके कारण संपूर्ण ब्रह्मांड में उथल-पुथल मच गई, संपूर्ण ब्रह्मांड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 52 भागों में बांट दिया जो अंग जहां पर गिरा वहां शक्तिपीठ बन गया। 

कालमाधव शक्तिपीठ में माता सती का बाया नितंब (कूल्हा) गिरा था। यहां माता सती को काली के रूप में पूजा जाता है। कालमाधव शक्ति पीठ मंदिर सफेद पत्थरों का बना है, इसके चारों ओर तालाब है। मान्यता है कि यहां पर सती का बाया नितंब गिरा था, वहीं कुछ लोगों का यह मानना है कि यहां पर सती का कंठ गिरा था। इसके बाद यह स्थान अमरकंठ और उसके बाद अमरकंटक कहलाया। 

नवरात्रि के दिनों में यहां पर भक्त बड़ी दूर-दूर से आते हैं। मान्यता है कि माता के दर्शन मात्र से ही भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। यही कारण है कि दूर-दूर से लोग माता के इस पावन दरबार में आकर आराधना करते हैं और अपनी मनोकामना को पूरा करने के लिए मां से प्रार्थना करते हैं। नवरात्रि के अवसर पर यहां देवी के भक्तों का तांता लगा रहता है।
 
अमरकंटक मैकल पर्वत पर स्थित है। यह मैकल पर्वत विंध्य पर्वत श्रृंखला और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला संधि पर्वत है। इसे पुराणकालीन पर्वत का अंग माना जाता है। इसे भौगोलिक चमत्कार ही कहा जाएगा कि एक ही स्थान से दो नदियां बिल्कुल विपरीत दिशाओं में बहती हैं। इसमें से सोन नदी जहां बिहार के पास गंगा नदी से मिलती है, वहीं नर्मदा गुजरात के भरूच नाम स्थान में अरब सागर में जाकर मिल जाती हैं।

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