दिन दूर नहीं जब लोग कहेंगे, भर लो हवा कंटेनर में!
दिन दूर नहीं जब लोग कहेंगे, भर लो हवा कंटेनर में!
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इन दिनों दिल्ली के हालात बेहाल हैं। हालात ये हैं कि बच्चों को घरों में ही रहने के लिए संदेश दिए जा रहे हैं आप सोच रहे होंगे कि कहीं यहां पर किसी बात का तनाव तो नहीं हो गया है लेकिन यह किसी तनाव से नहीं हुआ है दरअसल यह हो रहा है दिल्ली की हवा में जहरीली गैसों का प्रभाव बढ़ने से। कार्बन प्रभाव छोड़ने वाली वायु वायुमंडल में बढ़ गई है जिसके चलते ऐसे हालात हैं। यानि अब दिल्ली के लोगों को पानी की तरह हवा भी खरीदना होगी।

घबराईये नहीं एक कंपनी ने तो इस दिशा में काम करना भी प्रारंभ कर दिया था लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि हम कब जागेंगे। क्या दिल्ली की तरह देश के अन्य भागों में भी लोग नाक पर फिल्टर या मास्क लगाते घूमते रहेंगे क्या भौतिकवाद के दौर में रोजगार बढ़ाने का साधन हवा निर्माता कंपनियां होंगी।

अभी तक तो आप साइकिल के पहिये में उपयोग की जाने वाली हवा को ही एक या दो रूपए में खरीदा करते थे कई बार तो हाथ से हवा भरने का चार्ज भी नहीं लगता था मगर अब क्या आपको महंगे कंटेनर में मिलने वाली महंगी हवा खरीदनी होगी। दिल्ली को लेकर ही नहीं समूचे विश्व के लिए यह चिंतन की बात है कि वायु मंडल में कार्बनिक गैसों का उत्सर्जन बढ़ रहा है।

हालात ये हैं कि हम डीज़ल चलित वाहनों को तो बंद नहीं कर पाए हैं मगर कथित तौर पर ई रिक्शा का संचालन लाभ के लिए टूव्हीलर के ईंजन से कर रहे हैं ऐसे में हमें ईरिक्शा चलाने में भी कथित तौर पर पैट्रोलियम का सहारा लेना पड़ रहा है। यह बेहद हास्यास्पद है कि अब व्यक्ति कर लो दुनिया मुट्ठी में की तर्ज पर भर लो हवा कंटेनर में कहने के लिए मजबूर हो जाएगा। भौतिकवाद की इस अंधी दौड़ में हम अपने जीवन और पर्यावरण से ही समझौता कर रहे हैं। आखिर यह कहां तक जायज है।

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