नरेंद्र मोदी के बाद राहुल ने भी खेला एक बड़ा जुआँ!
नरेंद्र मोदी के बाद राहुल ने भी खेला एक बड़ा जुआँ!
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जबसे राहुल गाँधी ने कहा था कि यदि वे नोट-बदली के मुद्दे पर संसद में बोलेंगे तो भूकंप आ जाएगा, तबसे देशभर में उनके बोलने का इंतजार था कि वे कैसा भूकंप लायेंगे। परंतु वे इसके एक सप्ताह बाद बोले, वह भी मोदीजी के ही गुजरात के मेहसाणा की जनसभा में। उन्होंने वहाँ बड़े दम-ख़म से प्रधानमंत्री मोदी पर आरोप लगाया कि उन्होंने गुजरात का मुख्यमंत्री रहने के दौरान सहारा समूह और आदित्य बिरला समूह से घूस ली थी। भरी सभा में उन्होंने 40 करोड़ रुपये दिए जाने का तारीखवार विवरण भी पढ़ा। हालाँकि इससे भूकंप भी नहीं आया और कोई हल्का झटका भी नहीं लगा, परंतु यह निश्चित ही राहुल का प्रधानमंत्री पर एक साहसिक हमला था।

किन्तु यदि इस मामले की गहराई में जाये, तो मालुम पड़ेगा कि यह एक दुधारी तलवार है जिसे राहुल चला रहे हैं। सम्भावना है कि इससे बजाय नरेंद्र मोदी व भाजपा के बजाय कांग्रेस को ही अधिक बड़ा नुक्सान हो जाये। यह राजनैतिक युद्ध बहुत ही दिलचस्प हो गया है, क्योंकि पहले मोदीजी ने नोट-बदली करके एक बड़ा जुआँ खेला और अब राहुल ने यह आरोपों का दांव खेलकर एक और बड़ा जुआँ खेला है ।

लेकिन, इन आरोपों पर मीडिया में कोई भी चकित नहीं हुआ, क्योंकि ये आरोप बिलकुल नए नहीं थे, बल्कि काफी पहले वरिष्ठ वकील और 'स्वराज अभियान' के राष्ट्रिय अध्यक्ष प्रशांत भूषण ने इन्हीं आरोपों व इन्हीं सबूतों के साथ सुप्रीम कोर्ट में अपील की हुई है। उनकी वह अपील एक गैर-सरकारी संस्था 'कॉमन कॉज' के नाम से की गयी है, जिसमें मांग यह है कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में, इन दस्तावेजो के आधार पर एक स्वतंत्र जांच करवाई जाये। ये वे दस्तावेज हैं, जो कि आयकर विभाग के द्वारा इन कंपनियों पर 2013-14 में डाले गए छापों में मिले थे।

कॉमन कॉज का यह आरोप है कि इन दस्तावेजो के अनुसार इन कंपनियों द्वारा कई मुख्यमंत्रियों सहित बड़े राजनेताओ व नौकरशाहों को खूब रिश्वत दी गयी थी, उन्ही मुख्यमंत्रियों में गुजरात के मुख्यमंत्री का अर्थात नरेंद्र मोदी का नाम भी शामिल था। इसके बाद उन्ही आधारों पर 'आप' के नेता अरविंद केजरीवाल ने भी लोगों का ध्यान खींचने के लिए दिल्ली विधानसभा में इन आरोपों को पेश किया था । परंतु, इन पर राहुल गाँधी के भाषण से पहले कोई भी ख़ास ध्यान नहीं दे रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने भी अभी इस केस की सुनवाई स्वीकार नहीं की है पर अपील को नामंजूर भी नहीं किया है ! कोर्ट के अनुसार पेश किये गए कागजात या प्रमाण रिश्वत दिए जाने की बात को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। इसीलिये कोर्ट ने याचिकाकर्ता को निर्देश दिया है कि वह अगली सुनवाई की तारीख 11 जनवरी को पर्याप्त पुख्ता सबूत लेकर आये।

इसलिये अब इस केस की 11 जनवरी की तारीख बहुत ही ख़ास बन गयी है, क्योंकि अब यह केस राजनैतिक रूप से बहुत ही महत्वपूर्ण बन गया है। वास्तव में इस मामले में जो भी सबूत प्रशांत भूषण, अरविन्द केजरीवाल और राहुल गाँधी के पास हैं वे लेनदेन में शामिल केवल एक पक्ष के ही सबूत है, जो डायरियां और कंप्यूटराइज्ड एंट्रीज की सीडी मिली हैं, उनमें केवल देने वाले की ओर से लिखा गया है कि उसने इन-इन लोगों को इतना-इतना रूपया दिया। परंतु लेने वालों की ओर से लेने संबंधी स्वीकृति का कोई सबूत नहीं है। ऐसे मामलों में यह संभव है कि कोई खुद की डायरी में या कंप्यूटर में कुछ लोगों को धनराशि दिये जाने की एंट्री झूठ-मुठ ही कर ले, तो ऐसे सबूतों को कोर्ट की निगाह में पुख्ता सबूत नहीं माना जाता है। इसी कारण कोर्ट ने प्रशांत भूषण को और बेहतर सबूत पेश करने के लिये कहा है। अब यदि भूषण ऐसे पुख्ता सबूत पेश नहीं कर पाए कि जिन्हें कोर्ट केस चलाने के लिये पर्याप्त मजबूत माने तो यह केस ख़ारिज हो जाएगा। यदि ऐसा हुआ तो राहुल के आरोपों का गुब्बारा भी पंचर हो जाएगा और वे उपहास के पात्र बन जाएंगे ।

और दूसरी स्थिति में यदि भूषण (और उसके बाद केजरीवाल व राहुल भी) कभी पुख्ता सबूत जुटा पाए और कोर्ट ने उन्हें पर्याप्त मानकर मुकदमा चलाना और इसके आगे उच्च स्तरीय जांच करवाना भी मंजूर कर लिया, तो भी उससे केवल नरेंद्र मोदी की ही छवि ख़राब नहीं होगी, बल्कि उनके साथ-साथ कई कांग्रेसी पूर्व-मुख्यमंत्रियों, कई बड़े विपक्षी नेताओ एवं अनेक नौकरशाहों की इज्जत भी धूल में मिल जायेगी। यानी दोनों स्थितियों में कुल मिलाकर कांग्रेस आज से अधिक ख़राब हालात में पहुँच जायेगी।

इसलिए निष्कर्ष यह निकलता है कि राहुल का यह दांव या राजनैतिक जुआं कोई अच्छी तरह सोचा-समझा परिपक्व निर्णय नहीं है और अंत में उल्टा उनकी ही पार्टी के लिए घातक साबित हो सकता है। केवल एक ही स्थिति कांग्रेस के पक्ष में हो सकती है, कि यदि मोदी का नोट-बदली का दांव बुरी तरह से असफल हो जाये और जनता उनसे बहुत अधिक असंतुष्ट हो जाये तो कांग्रेस को राष्ट्रिय स्तर पर मौजूद एकमात्र विकल्प होने के कारण सहानुभूति जन-समर्थन भी मिल सकता है हालाँकि, ऐसी सम्भावना बहुत कम नजर रही हैं

इस पुरे खेल का बहुत सकारात्मक पहलू भी है कि, जब हमारे देश के दोनों प्रमुख राष्ट्रिय दल अब अपना सब कुछ दांव पर लगा चुके है यो उनकी इन चालों का जो परिणाम सामने आएगा उससे उन दोनों का ही पूरा कच्चा चिटठा दुनिया के सामने खुल जाएगा। सबको प्रमाणों के साथ मालूम हो जाएगा कि कौन कितना सच्चा, कितना सक्षम और कितना देशहित व जनहित का ध्यान रखने वाला है। उनके साथ ही अन्य कई नेताओं, उद्योगपतियों व अफ़सरों की भी असलियत उजागर हो जायेगी।   

  * हरिप्रकाश 'विसंत'

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