सेंगोल यानी समृद्धि का प्रतीक राजदंड। ये जिसे मिलता है उससे निष्पक्ष और न्यायपूर्ण शासन की उम्मीद की जा रही है। सेंगोल का पहला इस्तेमाल मौर्य साम्राज्य (322 से 185 ईसा पूर्व) में पाया जाता है। जिसके उपरांत गुप्त साम्राज्य (320 से 550 ईस्वी), चोल साम्राज्य (907 से 1310 ईस्वी) और विजयनगर साम्राज्य (1336 से 1646 ईस्वी) में भी सेंगोल का उपयोग किया गया। कहा जाता है कि मुगलों और अंग्रेजों ने भी सेंगोल का इस्तेमाल अपने अधिकार के प्रतीक के रूप में किया जा चुका है।
इस सेरेमनी के बाद ये राजदंड इलाहाबाद संग्रहालय में रखा गया। 1978 में, कांची मठ के 'महा पेरियवा' (वरिष्ठ ज्ञाता) ने इस घटना को एक शिष्य को बताया। इसके उपरांत में इसे प्रकाशित किया था। कहानी को तमिल मीडिया ने वरीयता दी और जीवित रखने के लिए जोर लगा दिया। यह बीते वर्ष तमिलनाडु में आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर एक बार फिर सामने आ चुकी है।
पीएम मोदी भी इससे प्रभावित हो गए। उन्होंने इसकी गहन कार्रवाई करने का आदेश भी दिए। जिसके उपरांत तय किया गया कि इसे नई संसद में स्पीकर की कुर्सी के पास रखा जाएगा। नई संसद के उद्घाटन के मौके पर इसे पूरे विधि-विधान से पीएम मोदी को सौंपा जाने वाला है।
सेंगोल की नई वेबसाइट के अनुसार 15 अगस्त, 1947 की भावना को दोहराते हुए वही समारोह 28 मई, 2023 को नई दिल्ली में संसद परिसर में दोहराया जाने वाला है। दिल्ली में इस अवसर पर तमिलनाडु के कई आधीनमों के प्रणेता उपस्थित रहने वाले है। वे अनुष्ठान में भाग लेने वाले है और कोलारु पदिगम गाएंगे। सेंगोल को गंगा जल से शुद्ध किया जाने वाला है, जैसा कि पहले किया गया था। इसे एक पवित्र प्रतीक के रूप में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के हाथों सौंप दिया जाने वाला है।
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