बीते समय में साल 1947 में देश के विभाजन के बाद से इस देश ने कभी भी लोगों का इतनी बड़ी संख्या में पलायन नहीं देखा है. अनुमान लगाया जा रहा है कि गांवों और शहरों से अपने घरों की ओर जाने वाली इस प्रवासी आबादी की संख्या करोड़ों में है. रेलवे विशेष ट्रेनें चला रहा है, रोडवेज की बसें लोगों को ले जाने में जुटी हैं, लेकिन स्थिति नियंत्रण में नहीं दिख रही हैं. इस पृष्ठभूमि में प्रवासी मजदूरों और इस समस्या के संभावित पहलुओं का अध्ययन बहुत जरूरी हो जाता है जिसे करने के लिए हमें चार पहलुओं पर विचार करना होगा.
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1. प्रवासी श्रमिक अपने गांवों और कस्बों से पलायन क्यों करता है?
2. क्या कोई श्रम कानून है जो उन स्थानों पर प्रवासी श्रमिक की सुरक्षा करे जहां वे आजीविका के लिए काम करते हैं?
3. उस राज्य की जिम्मेदारी क्या है जहां प्रवासी श्रमिक काम कर रहे हैं और रह रहे हैं?
4. प्रवासियों के गृह राज्य की जिम्मेदारी क्या है?
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि प्रवासी श्रमिक जब स्थानीय स्तर पर रोजगार नहीं खोज पाते हैं, चाहे वह उद्योगों में हो, कृषि में हो या फिर व्यावसायिक रूप से. गांवों में रहने वाले इन श्रमिकों के स्थानीय कौशल की हमारे पास कोई गणना नहीं है. कुछ आइटीआइ पास हो सकते हैं, कुछ मोटर मैकेनिक हो सकते हैं, कुछ इलेक्ट्रिशियन, प्लंबर, मिस्त्री या कंप्यूटर में पाठ्यक्रम कर चुके होंगे. इनके कौशल का पता ही नहीं है. स्थानीय उद्योगपति और रियल स्टेट उद्यमी अपनी आवश्यकताओं को अन्य स्थानों से पूरा करने की कोशिश करते हैं.
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