मोबाइल की लत, किस हद तक अच्छी
मोबाइल की लत, किस हद तक अच्छी
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छोटे बच्चों में इलैक्ट्रॉनिक एप्लाइसेंस खासतौर पर मोबाइल से खेलने की चाहत ने उन्हें कई बीमारियों से घेरकर रख दिया है। पर सवाल ये उठता है कि बच्चों के कोमल मन को ये लत आखिर कैसे लगती है। नीचे बताए गए कारणों पर रोक लगाकर हम बच्चों को इस लत से छुड़वा सकते हैं।

अकेलापन- एक बच्चे के चलन व दो बच्चों के बीच बहुत ज्यादा अंतर रखने के कारण बच्चों को घर के भीतर अपना हम उम्र साथी नहीं मिल पाता है जिससे उनका मनोरंजन इन गैजेट्स के जरिए ही होता है। ये मनोरंजन एक समय के बाद बच्चों के सिर पर हावी होकर लत में बदल जाता है।

वर्किंग पैरेंट्स- मंहगाई भरे दौर में माता-पिता दोनों का नौकरी करना मात्र शौक नहीं बल्कि जरूरत बन चुका है। सुबह होते ही वो अपने ऑफिस चले जाते हैं और दिन-भर बच्चों की क्रियाएं जानने के लिए कॉल व वॉट्सएप करते हैं। ऐसे में ये कहना भी गलत नहीं होगा कि बच्चों को मोबाइल की आदत माता-पिता ही लगा रहे हैं।

एकल परिवार- संयुक्त परिवार की टूटी डोर ने भी बच्चों को इन चीजों का आदि बना दिया है। पहले यदि माता-पिता जॉब पर जाते थे तो घर पर उनके बच्चों को देखने के लिए दादा-दादी, ताई-चाची, बुआ आदि उपलब्ध होते हैं। इसके साथ ही बच्चा यदि इकलौता है तो परिवार में रहने वाले सभी चचेरे भाई-बहन के साथ वो अकेलापन कभी महसूस नहीं कर सकता था।

सामाजिक परिवेश- एक-दूसरे से कटने की प्रवृत्ति व सामाजिक न होने की आदत ने भी बच्चों को घर में बैठकर इलैक्ट्रानिक गैजेट्स के प्रति रूझान बढ़ाने पर मजबूर कर दिया है। मां-बाप के सामाजिक न होने से बच्चे भी बाहर या पार्क में खेलने से कतराते हैं और अन्य बच्चों की बजाय मोबाइल को ही अपना दोस्त बना लेते हैं।

पैरेंट्स में भी गैजेट्स की लत- माता-पिता द्वारा भी दिन-भर मोबाइल पर लगे रहने की आदत बच्चों को प्रभावित करती है, जिस कारण बच्चे उनसे उनके मोबाइल लेने की जिद्द करते हैं।

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