दयानंद सरस्वती की 5 बातें
दयानंद सरस्वती की 5 बातें
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जहा नरसी मेहता, सरदार पटेल, महात्मा गांधी का जन्म हुआ, उसी गुजरात में 1825 ई. को टंकारा ग्राम में ब्राह्मण कुल में कर्षण तिवारी और यशोदा बाई के आंगन में एक तेजस्वी बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम मूलशंकर रखा गया।
बाद में यही बालक महर्षि दयानंद के नाम से विख्यात संत हुए। 1857 के पहले स्वाधीनता संग्राम से लेकर महाप्रयाण 1883 तक वे अंग्रेजी शासन से छुटकारा दिलाने और आजादी के रणबांकुरों को स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करने में लगे रहे। 1875 में दयानंद ने मुंबई की काकड़बाड़ी में आर्य समाज की स्थापना की, जिसका मकसद मानवता का कल्याण था। उन्होंने आर्य समाज के नियम में कहा कि किसी भी इंसान को अपने विकास से ही संतुष्ट नहीं रहना चाहिए, बल्कि सबकी प्रगति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए। स्वामी दयानंद ने सारा जीवन वेद, दर्शन, धर्म, भाषा, देश, स्वतंत्रता, समाज की बदतर हालात को सुधारने, समाज में फैले अंधविश्वासों, पाखंड़ों और बुराइयों को खत्म करने में समर्पित कर दिया। महर्षि दयानंद ने शिक्षा, दलितों और स्त्रियों की हालत सुधारने में काफी योगदान दिया। बाल विवाह, सती प्रथा, जन्मगत जाति-पाति और ऊंच-नीच के भेदभाव से समाज का उबारा। धर्म, अध्यात्म, योग और कर्मकांड के नाम पर तंत्र-मंत्र, जादू-टोने और भूत-प्रेत के टोटके किए जाते थे जिसको लेकर उन्होंने जागरूकता फैलाई।

 

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